आमतौर पर हम जीवन में सकारात्मक सोच को एक आदर्श मानते हैं। हर कोई यह सिखाने का प्रयास करता है कि हमें नकारात्मकता से दूर रहकर सकारात्मकता अपनानी चाहिए। परंतु, ओशो के विचार इस परंपरागत दृष्टिकोण से भिन्न हैं। ओशो का मानना है कि सकारात्मक और नकारात्मक सोच दोनों ही जीवन के गहरे अनुभवों को सीमित कर देते हैं। उनका कहना है कि जब तक हम सोच में फंसे रहेंगे, हम जीवन की वास्तविकता से दूर रहेंगे।
ओशो कहते हैं:
*"मैं सकारात्मक सोच के बिल्कुल खिलाफ हूं।"*
उनका तात्पर्य यह है कि सकारात्मकता भी एक प्रकार की मानसिक जकड़न है, जो हमें वास्तविकता से परे ले जाती है। उनके अनुसार, यदि हम किसी भी प्रकार की सोच या पक्षपात से मुक्त होकर सिर्फ 'साक्षीभाव' में रहें, तो हम उस अस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों से परे है।
**साक्षीभाव का महत्व**
साक्षीभाव का अर्थ है 'निर्निमेष चेतना' – जिसमें हम बिना किसी निर्णय, सोच या अपेक्षा के सिर्फ उस क्षण का अनुभव करते हैं। ओशो इस स्थिति को 'अस्तित्व' से जोड़ते हैं। उनके अनुसार, सच्चा आनंद, शांति, और जीवन की गहराई तभी अनुभव हो सकती है, जब हम न सकारात्मकता का पक्ष लें और न नकारात्मकता का। यह विचार वैदिक और योगिक दर्शन से भी मेल खाता है।
**संस्कृत श्लोक:**
*"योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥"*
(भगवद गीता 2.48)
अर्थ: योगस्थ होकर कर्म करो, हे धनंजय! आसक्ति को त्यागकर, सफलता और असफलता में समान रहकर। समत्व का भाव ही योग कहलाता है।
यह श्लोक हमें ओशो के विचारों की पुष्टि करता है कि हमें किसी भी प्रकार की सोच या परिणाम से बंधे बिना सिर्फ वर्तमान क्षण में जीना चाहिए।
**सकारात्मक सोच की सीमाएँ**
सकारात्मक सोच हमें अस्थायी सुख की ओर खींच सकती है, लेकिन यह हमारे जीवन के गहरे सवालों के उत्तर नहीं दे सकती। ओशो के अनुसार, सकारात्मकता एक छलावा है, क्योंकि यह हमें 'नकारात्मकता' से बचने का भ्रम देता है, परंतु दोनों ही द्वैत के हिस्से हैं। सच्ची मुक्ति इन दोनों से परे अस्तित्व में स्थित है।
**अस्तित्व की ओर अग्रसर**
जब हम किसी सोच या निर्णय से परे होते हैं, तब ही हम वास्तव में 'अस्तित्व' का अनुभव कर सकते हैं। ओशो हमें इसी अवस्था की ओर ले जाते हैं – जहाँ जीवन न तो सकारात्मक होता है, न नकारात्मक, बल्कि केवल होता है।
इस प्रकार, ओशो का संदेश है कि न सोच से जियो, न सकारात्मकता या नकारात्मकता में उलझो – बस अस्तित्व को अनुभव करो। यही जीवन की सच्ची सुंदरता है।
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यह लेख ओशो की अद्वितीय दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है और भगवद गीता के श्लोक के साथ उसे जोड़ता है।