त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,

त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,
पर मंजिल की चादर रह गई मुझसे दूर, यार।

मेरे अरमानों की जमीं पर खिल न सका फूल,
मेहनत का फल मुझे मिल न सका, ये कैसी भूल?

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...