पर मंजिल की चादर रह गई मुझसे दूर, यार।
मेरे अरमानों की जमीं पर खिल न सका फूल,
मेहनत का फल मुझे मिल न सका, ये कैसी भूल?
क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...