त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,

त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,
पर मंजिल की चादर रह गई मुझसे दूर, यार।

मेरे अरमानों की जमीं पर खिल न सका फूल,
मेहनत का फल मुझे मिल न सका, ये कैसी भूल?