पर मंजिल की चादर रह गई मुझसे दूर, यार।
मेरे अरमानों की जमीं पर खिल न सका फूल,
मेहनत का फल मुझे मिल न सका, ये कैसी भूल?
अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...
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