सच्चाई और आत्ममूल्य



तुम कहते हो कि ये सब मानसिक खेल है,
लेकिन क्या कभी सोचा है,
हमारे विचारों को भी समझने का एक तरीका होता है।
क्या यह सिर्फ़ अपने विचारों का पालन करना,
या सिस्टम से बाहर निकलने की कोशिश नहीं?

"तुम कुछ अलग नहीं हो," यह तुम कहते हो,
क्या तुमने कभी खुद से पूछा,
क्या जो मैं हूं, वही मेरी असली पहचान है?
हम सभी एक यात्रा पर हैं,
और हाँ, बाहर जाकर जीवन को महसूस करना ज़रूरी है,
लेकिन खुद को समझना और बदलना भी उतना ही आवश्यक है।

अगर तुम इसे "मनोवैज्ञानिक खेल" समझते हो,
तो भी शायद तुम एक हद तक सही हो,
क्योंकि हर सवाल का जवाब
हमारे अंदर कहीं छिपा होता है।
लेकिन, इस खेल को समझने से डरना क्यों?
आओ, खुद से सवाल उठाओ,
शायद तुम्हारे अंदर भी कुछ नया देखने का मौका हो।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...