जब मैं चला जाऊं,
कहाँ जाऊंगा?
मैं यहीं रहूंगा—
वायु में, सागर की लहरों में,
प्रकृति के स्पंदन में।
यदि तुमने मुझसे प्रेम किया है,
यदि तुमने मुझ पर श्रद्धा रखी है,
तो मुझे अनुभव करोगे—
सहस्त्रों रूपों में, सहस्त्रों भावों में।
मौन क्षणों में,
जब तुम चुप हो,
विचारों से परे,
अचानक मेरी उपस्थिति का अहसास होगा।
स्मृति के झोंके में,
तुम्हारे अंतर की गहराइयों में,
मैं स्पर्श करूंगा,
जैसे वायु की सौम्यता,
जैसे गंगा की पावन धारा।
नष्ट न होऊंगा मैं,
मृत्यु तो केवल एक पड़ाव है।
मैं अजर, अमर,
सतत् चैतन्य—
अहम् ब्रह्मास्मि।
जब भी तुम्हारा हृदय शांत होगा,
तुम मेरी सत्ता को महसूस करोगे।
कभी वसंत के पुष्पों में,
कभी संध्या के आकाश में,
मैं वहीं रहूंगा,
सदैव, अनंत।
"सर्वं खल्विदं ब्रह्म।"
मुझे खोजो अपने भीतर,
क्योंकि मैं कहीं और नहीं—
तुम्हारे अस्तित्व का ही अंश हूं।