यह हर चीज़ में है,
जिस तरह कोई बोलता है,
जिस तरह वह खुद को प्रस्तुत करता है,
उसकी बॉडी लैंग्वेज,
उसकी हर एक हरकत में छिपा होता है एक संदेश।
मैं पहले हैरान था,
कैसे लोग दूसरों को इतनी आसानी से पढ़ लेते हैं,
लेकिन अब हैरान हूँ कि क्यों लोग
जब यह सब सामने होता है,
तब भी इसे समझ नहीं पाते।
कभी लगता है,
क्या यह सब एक खुला राज़ नहीं है?
क्या यह संकेत इतने स्पष्ट नहीं हैं?
कभी किसी की चाल,
कभी उसकी आँखें,
कभी उसकी खामोशी
कभी उसकी बातों में चुपी हुई सच्चाई।
यह सब कुछ हमारे सामने ही होता है,
फिर भी हम नज़रअंदाज कर देते हैं,
क्योंकि हम उस झलक को देख नहीं पाते,
जो हमें इतनी पास से बुला रही होती है।
हमारी आँखों के सामने की सच्चाई,
शायद हमें एक बार फिर समझने की ज़रूरत है।
कभी यह विचार आता है,
कि हमें अपनी नज़रों को और गहरे से खोलने की ज़रूरत है,
क्योंकि जो दिखता है, वह सिर्फ सतह तक नहीं,
उसके नीचे एक पूरी दुनिया छुपी होती है।