वेदों में प्राचीनतम और अत्यधिक प्रेरणादायक मंत्र हैं, जो हमारी पृथ्वी को समर्पित हैं। यह 'पृथ्वी सूक्त' अथर्ववेद से है, जो पृथ्वी की महिमा और उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रशंसा करता है।
पृथ्वी सूक्त के 63 शक्तिशाली छंद सीधे हमें हमारी माँ पृथ्वी की उपासना की महत्ता को समझाते हैं। इसमें पृथ्वी को बस माता नहीं, बल्कि हमारी शक्ति, हमारी पोषणा, और हमारी संजीवनी शक्ति के रूप में स्तुति की गई है।
वैदिक संस्कृति में, पृथ्वी को 'धरा', 'भूमि', और 'विष्णुपत्नी' के रूप में संदर्भित किया गया है। वेदों में पृथ्वी के प्रति श्रद्धाभावना और आदर की उपासना की गई है, जो हमें प्राकृतिक संतुलन और समृद्धि के महत्त्व को समझाती है।
वैदिक साहित्य में, हमें इस बात का आदर्श मिलता है कि हमें पृथ्वी की रक्षा करनी चाहिए और उसका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
**संस्कृत श्लोक:**
"धरा शान्तिः, अन्तरिक्षं शान्तिः,
द्यौः शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः,
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि।"
यह श्लोक हमें पृथ्वी के साथ सदा शांति की प्रार्थना करने का आदर्श देता है, जो हमें प्राकृतिक संरक्षण और समृद्धि के लिए संजीवनी शक्ति के रूप में समझाता है।