आधा मन, आधी जीत नहीं




कभी-कभी खुद से किए वादे टूट जाते हैं,
जोश के ज्वार, समय पर सूख जाते हैं।
आधा मन लगाकर, जीत कैसे मिलेगी?
जो आधा चले, वो मंज़िल से भटक ही जाएगी।

पर हर बार एक नई शुरुआत बनती है,
जो गिरता है, वही संभलने की बात करता है।
इस बार आधे मन को पूरी ताकत से भरना है,
जो अधूरा था, उसे अब पूरा करना है।

जब भी ढीला पड़े, ये याद दिलाना,
वो सपना, जो तुझे नींद से जगाता।
हर कदम में, हर सांस में, वो जुनून लाना,
इस बार कोई बहाना नहीं बनाना।

खुद से वादा, खुद का धर्म बना,
जो ठाना है, अब बस उसे ही करना।
फेल तो होंगे, पर अधूरे नहीं,
ये जिंदगी है, इसे खेल बनाना सही।

याद रखो, आधे दिल से कुछ नहीं जीतोगे,
पर पूरे मन से, दुनिया पलटोगे।


नया जोश, नई राह



इस बार मेहनत बेकार नहीं जाएगी,
हर कदम अब सोच-समझ कर उठाई जाएगी।
जुनून वही है, पर नजरिया नया,
अब हर प्रयास होगा थोड़ा और बढ़िया।

हार की चिंगारी, आग में बदलेंगी,
सपनों की चादर फिर से रंगेंगी।
काम करना है अब सिर्फ स्मार्ट,
हर पल होगा लक्ष्य के साथ।

झटकों ने सिखाया है आगे बढ़ना,
हर गलती ने दिखाया है सही करना।
अब न कोई बेमतलब की दौड़,
हर कदम पर होगा लक्ष्य का जोड़।

ध्यान, धैर्य, और दिशा के साथ,
इस बार बनानी है जीत की बात।
राह चाहे कठिन हो, मन को न डिगाना,
हर ठोकर को अपनी ताकत बनाना।

तो चलो, अब लगाएं ये नया पाठ,
सपनों को सच करना ही है बस हमारा साथ।
हर setback बनेगा comeback की वजह,
अब कोई कोशिश अधूरी न रहे, ये है वादा।


प्रेम- तंत्र ५



प्रेम ही तो है, असली सार,
जहाँ नहीं है वासना का भार।
जब दो दिल जुड़ें आत्मा के तार,
वहीं तंत्र होता साकार।

स्पर्श जहाँ बन जाए दैवीय गीत,
न हो कोई इच्छाओं की भीत।
संबंधों का हो निर्मल प्रवाह,
जहाँ केवल शुद्धता का वास।

यह मिलन नहीं है तन का खेल,
यह तो है आत्मा का मेल।
जहाँ प्रेम हो, वहाँ स्वर्ग है,
वासना से मुक्त, यही तंत्र का संग है।

जो समझे इस सत्य की बात,
पाएगा जीवन में अद्भुत सौगात।
प्रेम का यह शाश्वत रूप,
हर पल बनाए जीवन को अनूप।


लेखनी - जो स्वयं लिखती है

मुझे नहीं लिखना होता, शब्द अपने आप संवरते हैं। विचार नहीं बुनने पड़ते, भाव अपने आप उमड़ते हैं। जैसे गगन में बादल घुमड़ते, वैसे मन में अर्थ उ...