आधा मन, आधी जीत नहीं




कभी-कभी खुद से किए वादे टूट जाते हैं,
जोश के ज्वार, समय पर सूख जाते हैं।
आधा मन लगाकर, जीत कैसे मिलेगी?
जो आधा चले, वो मंज़िल से भटक ही जाएगी।

पर हर बार एक नई शुरुआत बनती है,
जो गिरता है, वही संभलने की बात करता है।
इस बार आधे मन को पूरी ताकत से भरना है,
जो अधूरा था, उसे अब पूरा करना है।

जब भी ढीला पड़े, ये याद दिलाना,
वो सपना, जो तुझे नींद से जगाता।
हर कदम में, हर सांस में, वो जुनून लाना,
इस बार कोई बहाना नहीं बनाना।

खुद से वादा, खुद का धर्म बना,
जो ठाना है, अब बस उसे ही करना।
फेल तो होंगे, पर अधूरे नहीं,
ये जिंदगी है, इसे खेल बनाना सही।

याद रखो, आधे दिल से कुछ नहीं जीतोगे,
पर पूरे मन से, दुनिया पलटोगे।


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