मैं और मेरा शरीर



हां, मैं पतला हूँ, बहुत पतला,
लेकिन क्या फर्क पड़ता है, जब दिल है खुश हाल?
हर निगाह में कमी ढूँढी जाती है,
पर मैं अपने शरीर में कुछ नहीं खोता।

यह शरीर, मेरी पहचान नहीं,
मेरा मन, मेरी आत्मा की झलक है।
जो भी आकार हो, कौन सा रंग हो,
मैं हूँ, और यही मायने रखता है।

लोग कहते हैं, तुम कुछ खाओ, बढ़ो,
पर मैं खुश हूँ जैसे हूँ।
न वजन, न रूप, न आकार का खेल,
मुझे चाहिए बस शांति का मेल।

पतला हूँ तो क्या,
हर सांस, हर कदम, सच्चा है।
किसी और से नहीं,
बस खुद से प्यार करूँ।

इस शरीर में खुशी है,
क्योंकि यह मेरा है, और मैं इसे अपनाता हूँ।
न कम, न ज्यादा,
बस वही हूँ जो हूँ,
और यही सच्ची खुशी है।


श्रेष्ठ पुरुष के प्रतीक

एक शरीर जो ताजगी और ताकत से भरा हो, स्वस्थ आदतें, जो उसे दिन-ब-दिन नया रूप दें। ज्ञान की राह पर जो चलता हो, पढ़ाई में समृद्ध, हर किताब में न...