अगर मुझे इन छोटी-छोटी चीज़ों में शांति नहीं मिलती—
साँस लेना, चलना, देखना, खाना, सोना—
तो शायद मेरी आत्मा शोर में उलझ गई है।
मुझे रुकना होगा, थमना होगा,
एक डोपामिन डिटॉक्स की सख्त ज़रूरत है।
जब हर पल त्वरित सुख की तलाश में भटकता हूँ,
सामान्य चीज़ें बोझिल लगने लगती हैं।
जो कभी खुशी देते थे,
अब वो अर्थहीन से लगते हैं।
मैंने सीखा है कि खुद को रीसेट करना ज़रूरी है।
शोर से दूर, स्क्रीन से दूर,
बस खुद के पास,
जैसे नदियाँ फिर से शांत होती हैं,
वैसे ही मेरा मन भी।
जब मैं यह करता हूँ,
छोटी चीज़ें फिर से चमत्कारी लगने लगती हैं।
साँसें जैसे मधुर संगीत बन जाती हैं,
चलना जैसे धरती को महसूस करने का उत्सव हो।
हर निवाला एक दुआ लगने लगता है,
और नींद, जैसे प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार।
डोपामिन डिटॉक्स ने मुझे यह सिखाया है—
शांति बाहर नहीं, भीतर है।
जीवन, जब धीमा होता है,
तब और भी खूबसूरत लगता है।
अब मैं जानता हूँ,
इन छोटी-छोटी खुशियों में
सच्चा आनंद छिपा है।