निज मन को मुक्त करो



दर्द की परछाइयों में क्यूं उलझा है मन,
भूत के भार से क्यों झुका है तन।
आओ, छोड़ दें वो बीते हुए घाव,
जो अब नहीं दे सकते जीवन का सही प्रभाव।

अंधेरों से बाहर, उजाले की ओर,
छोड़ो वो जंजीरें, तोड़ो हर छोर।
हर घाव की गहराई से झांके प्रकाश,
जहां नया सवेरा दे जीवन का आभास।

निष्प्राण हो मन, बनो शांत झील,
जहां न हो लहर, न कोई हठील।
निष्क्रियता में छुपा है सच्चा आराम,
जहां न हो अतीत का कोई भी नाम।

निःशब्द मन, निःशूल प्राण,
यही है स्वतंत्रता, यही है ज्ञान।
छोड़ो दर्द, मुक्त करो आत्मा,
हर क्षण नया है, हर क्षण मातमा।

चलो, निःमन में खोजें नई राह,
जहां न हो अतीत का कोई प्रवाह।
मुक्त हो जाओ, बंधन तोड़ दो,
अपने भीतर का आकाश खोज लो।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...