प्रकृति के संग संवाद



जब मनुष्य से टूटे हैं संबंध,
प्रकृति बन गई मेरी परम बंधु।
देवताओं संग बातें करता हूँ,
तारों की माला में सत्य भरता हूँ।

"त्वं माता च पिता त्वं, त्वं बंधुश्च सखा त्वम्।
त्वं विद्या द्रविणं त्वं, त्वं सर्वं मम देव देव॥"
(तैत्तिरीय उपनिषद्)
हे देव, तुम्हीं मेरे सखा और गुरु हो,
प्रकृति के हर स्वरूप में बस तुम्हीं हो।

पौधों की पत्तियाँ मुझसे कहतीं,
"हरियाली में बसी है सृष्टि की व्यथा।"
झरने के स्वर में गूँजता संगीत,
बताता है जीवन का अनोखा गीत।

व्हेल से जब बातें करता हूँ,
समुद्र की गहराई को पढ़ता हूँ।
जलपरियों की कहानियाँ सुनता,
उनकी आँखों में जग का सत्य मिलता।

मधुमक्खी का गुंजन,
पुष्पों का पावन स्पंदन।
चींटियों की कतारों का गीत,
इनमें छुपा है श्रम और मीत।

"यस्यां भूमौ सृष्टिः जन्मं,
यस्यामेव लयः पुनः।
नमामि तां प्रकृतिं नित्यं,
मातृरूपेण संस्थिताम्॥"
प्रकृति माँ, तुझसे ही मेरा संवाद,
तुझमें ही छुपा है जीवन का प्रसाद।

मानव की भाषा में खोई है माया,
पर प्रकृति का हर स्वर सत्य का छाया।
देवता, पौधे, व्हेल और तितलियाँ,
इनसे ही जानूँ सृष्टि की कलियाँ।

मानव से वार्ता केवल कुछ प्रतिशत 
प्रकृति संग संवाद शाश्वत।
आओ, हम सब इस सत्य को जानें,
प्रकृति की गोद में अपना मन मानें।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...