खुद को सीमित मत करो



क्यों रुकूं मैं, खुद से पहले हार मानकर,
क्यों खुद को नकारूं, बिना प्रयास किए जानकर।
ये फैसला उनका है, मुझे अपनाने का या नहीं,
खुद को सीमित करना, मेरी गलती सही नहीं।

जो मौका है, उसे अपना बनाना चाहता हूँ,
अपनी काबिलियत को हर कदम पर आज़माना चाहता हूँ।
अगर वे कहें "नहीं", तो भी कोई बात नहीं,
पर कोशिश किए बिना पीछे हटना, मेरी बात नहीं।

हर कदम, हर कोशिश, मेरा हौसला बढ़ाती है,
खुद पर विश्वास ही मेरी ताकत कहलाती है।
तो क्यों रोकूं खुद को, क्यों दरवाजे बंद करूं,
हर मौके को जी भर कर, जीने का मन रखूं।

फैसला उनका है, पर कोशिश मेरी,
खुद पर भरोसा रखूं, यही जीत है मेरी।


"प्रेम का दिव्यता रूप"

प्रेम ही असली चीज़ है, जहाँ मन का हर बीज है। कामनाओं से परे की धारा, जहाँ आत्मा ने खुद को पुकारा। जब स्पर्श हो बिना वासना की छाया, तो प्रेम ...