ईश्वर का प्रिय



जो न द्वेष रखे, न शत्रुता पाले,
हर हृदय में प्रेम का दीपक जले।
जो करुणा से हर कण को सींचे,
ऐसे मनुज को ईश्वर सदा पुकारे।

अहिंसा की जो राह चले,
हर प्राणी को अपनाए।
दुख में जिसके दृग न भीगें,
सुख में जो न अभिमान दिखाए।

"अहिंसा परमोधर्मः" कहे,
हर वाणी से शीतलता दे।
न स्वार्थ का बंधन, न मोह का भार,
समता से जीवन को रंग दे।

वह प्रिय है, जो संगिनी धरा का,
हर जीव को अंश माने।
शत्रुता का भाव जो हर ले,
हर अंतर्मन में शांति लाए।

हे मनुष्य, तू यह जान ले,
शत्रुता से कोई विजय नहीं।
प्रेम और दया के सागर में,
ईश्वर की सच्ची छवि यही।

जो हर मन में मित्रता जगाए,
ऐसा हृदय ईश्वर को भाए।
द्वेष-रहित, अहंकार-शून्य,
बस वही आत्मा प्रभु को पाए।

"प्रेम का दिव्यता रूप"

प्रेम ही असली चीज़ है, जहाँ मन का हर बीज है। कामनाओं से परे की धारा, जहाँ आत्मा ने खुद को पुकारा। जब स्पर्श हो बिना वासना की छाया, तो प्रेम ...