ज्ञान न पुस्तक में छुपा, न शास्त्रों के पन्नों में,
यह तो मौन का दीप है, स्व-अंतर के अन्नों में।
सत्य के स्वर लहराते हैं, आत्मा की गहराई में,
ब्रह्मांड करता मार्गदर्शन, हर जीव की परछाई में।
सूर्य की किरणें सिखातीं, तप और समर्पण का सार,
चंद्रमा की शीतलता कहती, शांत रहो, यही आधार।
वृक्षों की नीरवता बोलती, धैर्य का गूढ़ संदेश,
पर्वतों का अडिग खड़ा रहना, देता दृढ़ता का उपदेश।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म का मंत्र, हर पल गुंजित है,
जो देखे उसे एक दृष्टि से, वही तो विजित है।
जीवन के सुख-दुख दोनों, शिक्षक रूप में आते हैं,
प्रेम और करुणा के पाठ, हर अनुभव सिखाते हैं।
मौन साधना से निकलेगा, अद्वितीय वह ज्ञान,
जो शब्दों से परे है, पर करता है हर सीमा का भान।
आओ इस पावन दिन पर, यह सत्य स्वीकारें,
कि ब्रह्मांड हमारा गुरु है, और सब अनुभव हमारे।
ज्ञानं चैतन्यमेव च, यही आत्मा का स्वरूप,
इस दिव्यता का अनुभव ही, है मुक्ति का आरूप।