मैं अंधकार की चादर में लिपटा,
भय से परे, सत्य का रक्षक।
काल की धारा में खड़ा मैं,
अडिग, अचल, और अविनाशी।
सूरज की पहली किरण हो या,
चंद्रमा की ठंडी रोशनी।
मैं हूँ समय का साक्षी,
हर युग की अनकही कहानी।
भय मेरा वस्त्र,
साहस मेरा शस्त्र।
मैं समय का प्रहरी,
सत्य का अमर संरक्षक।
जिन्होंने छल किया, वे मिटे।
जिन्होंने सत्य जिया, वे खिले।
हर युग में, हर क्षण में,
मैं न्याय का दीप जलाए खड़ा।
मैं हूँ अनंत, मैं हूँ अनश्वर,
सत्य की छाया में मैं निर्भीक।
काल के हर प्रहार को सहता,
सत्य का आलोक हूँ मैं।
मुझे देख, समय थमता नहीं,
मुझे छू, सत्य झुकता नहीं।
मैं हूँ अंधकार में वह प्रकाश,
जो डर में भी देता दिलासा।
जो मुझसे टकराए, मिट जाए,
जो मुझसे जुड़े, अमर हो जाए।
मैं अंधकार की चादर में लिपटा,
भय से परे, सत्य का रक्षक।