लेफ्ट-विंग आतंकवाद: ऐतिहासिक दृष्टिकोण और इसके वैचारिक मूल


 


लेफ्ट-विंग आतंकवाद, वह हिंसा है जो व्यक्तियों या समूहों द्वारा की जाती है, जो साम्यवाद या समाजवाद जैसे उग्र वामपंथी विचारधाराओं से प्रेरित होते हैं। इनका उद्देश्य मौजूदा पूंजीवादी या लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को उखाड़ फेंककर एक समाजवादी या कम्युनिस्ट राज्य की स्थापना करना होता है। यह आतंकवाद 19वीं और 20वीं शताब्दी के राजनीतिक अशांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ, और यह प्रारंभिक अराजकतावादी आंदोलनों से लेकर शीत युद्ध काल के क्रांतिकारी आंदोलनों तक विकसित हुआ। हालांकि, 1990 के दशक के बाद से इसका प्रभाव कम हुआ है, फिर भी यह आज भी उन देशों में देखा जाता है जहां विद्रोही समूह स्थापित शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।


         लेफ्ट-विंग आतंकवाद के वैचारिक मूल 


लेफ्ट-विंग आतंकवादी समूह अक्सर उन विचारधाराओं से प्रेरित होते हैं जो मार्क्सवाद, समाजवाद और साम्यवाद से संबंधित होती हैं। इन समूहों का उद्देश्य पूंजीवादी संरचनाओं को नष्ट करके श्रमिक वर्ग द्वारा शासित समानतावादी समाजों की स्थापना करना होता है। लेफ्ट-विंग आतंकवाद के मूल की शुरुआत 19वीं शताब्दी से मानी जाती है, जब रूस में  नारोदनया वोल्या  (पीपल्स विल) नामक एक क्रांतिकारी समाजवादी समूह ने 1881 में ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या की। यह घटना "कृत्य की प्रचार" (प्रोपेगैंडा ऑफ द डीड) के विचार का प्रारंभ करती है, जिसके अंतर्गत आतंकवादी कृत्य ऐसे कार्य होते थे जिनका उद्देश्य समाज में क्रांतिकारी चेतना फैलाना और जन विद्रोह को प्रेरित करना होता था।


20वीं शताब्दी के दौरान, लेफ्ट-विंग आतंकवाद ने विभिन्न रूपों में खुद को प्रदर्शित किया। उदाहरण के लिए,  रेड आर्मी फैक्शन (RAF)  जर्मनी में और  रेड ब्रिगेड्स  इटली में सक्रिय रहे। इन समूहों ने अपहरण, बम विस्फोट और अन्य हिंसक कार्रवाइयों के जरिए सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश की, ताकि उनके विचारधाराओं के अनुसार क्रांति की शुरुआत हो सके। इन समूहों का उद्देश्य मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा से प्रेरित था, जो पूंजीवादी व्यवस्थाओं के खिलाफ हिंसक क्रांति के द्वारा सत्ता का परिवर्तन करने की वकालत करती थी।


         भारत में लेफ्ट-विंग आतंकवाद का उदय 


भारत में लेफ्ट-विंग आतंकवाद का उदय 1960 के दशक में हुआ, जब  नक्सलवादी आंदोलन  ने उग्र रूप धारण किया। यह आंदोलन माओवादी विचारधारा से प्रेरित था और इसका उद्देश्य भारत में एक साम्यवादी समाज की स्थापना करना था। इस आंदोलन की शुरुआत पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई, जहां किसानों और मजदूरों द्वारा भूमि सुधार और श्रमिक अधिकारों के लिए विद्रोह किया गया था। इस आंदोलन के नेतृत्व में  चारु मजुमदार  और  कानू सान्याल  जैसे नेता थे, जिन्होंने "हथियार के जरिए क्रांति" की बात की थी। नक्सलवादियों का मानना था कि सत्ता को तो केवल हिंसा और क्रांति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।


भारत में नक्सलवाद के फैलाव के कारण, कई राज्य सरकारों ने इसे एक गंभीर सुरक्षा खतरे के रूप में देखा। सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ सशस्त्र अभियान शुरू किए, लेकिन नक्सलवादी तत्व अभी भी कुछ राज्यों में सक्रिय हैं, विशेष रूप से  छत्तीसगढ़ ,  झारखंड ,  बिहार , और  ओडिशा  जैसे इलाकों में।


         लेफ्ट-विंग आतंकवाद का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव 


20वीं शताब्दी के दौरान, लेफ्ट-विंग आतंकवाद ने वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाला।  क्यूबा  के क्रांतिकारी नेता  फिदेल कास्त्रो  की प्रेरणा से लैटिन अमेरिका में कई उग्र वामपंथी आंदोलन फले-फूले।  ईरान में 1979 का इस्लामी क्रांति  भी लेफ्ट-विंग विचारधारा से प्रेरित था, जहां एक कम्युनिस्ट और समाजवादी गठबंधन ने शाह के शासन को उखाड़ फेंका था। इसके अलावा,  एशिया  के कई देशों में माओवादी आंदोलनों ने हिंसा और विद्रोह की लहर चलाई, जैसे  नेपाल ,  फिलीपींस  और  वियतनाम  में।


         आज के दौर में लेफ्ट-विंग आतंकवाद 


आजकल, लेफ्ट-विंग आतंकवाद का स्वरूप थोड़ा बदल चुका है, लेकिन यह अभी भी कई देशों में सक्रिय है। इसमें मुख्य रूप से  माओवादी ,  नक्सलवादी  और  अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट समूह  शामिल हैं, जो खासकर विकासशील देशों में अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, इन समूहों की कार्यशैली और व्यापकता में गिरावट आई है, फिर भी वे कई स्थानों पर सुरक्षा बलों के लिए एक गंभीर चुनौती बने हुए हैं। 


आज के समय में, विशेषकर  भारत  और  ब्राजील  जैसे देशों में, इन समूहों के प्रभाव से निपटने के लिए सरकारों ने कड़ी सुरक्षा नीतियां और रणनीतियाँ बनाई हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन आंदोलनों की उपस्थिति समाज में गहरी असंतोष और आर्थिक विषमताओं का परिणाम होती है, जिनके समाधान के बिना इन आतंकवादी समूहों की ताकत पूरी तरह से समाप्त नहीं की जा सकती।



लेफ्ट-विंग आतंकवाद का इतिहास एक लंबी और जटिल यात्रा रही है, जो विभिन्न देशों और समाजों में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असंतोष से प्रेरित रही है। इसके विचारधारात्मक मूल मार्क्सवाद, समाजवाद और कम्युनिज़्म से जुड़े हुए हैं, जो पूंजीवाद के खिलाफ हिंसक क्रांति को सही मानते हैं। जबकि इस तरह के आंदोलनों की ताकत और प्रभाव समय के साथ घटे हैं, यह समस्या आज भी वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।


 लेफ्ट-विंग आतंकवाद: इतिहास, विचारधारा और प्रभाव के विस्तार में अध्ययन   


लेफ्ट-विंग आतंकवाद का केंद्र समाजवादी और साम्यवादी विचारधाराएं हैं। ये आंदोलन शोषण, असमानता और सत्ता के केंद्रीकरण के खिलाफ संघर्ष के रूप में उभरे। उनका दावा है कि पूंजीवादी व्यवस्थाएं श्रमिक वर्ग और कमजोर समुदायों का शोषण करती हैं। लेफ्ट-विंग आतंकवाद इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर एक समानतावादी समाज की स्थापना करने के लिए हिंसा को एक वैध साधन मानता है।  


यहां इस विषय को और गहराई से समझने के लिए इसके इतिहास, विचारधारात्मक जड़ें, भारत और विश्व में इसके प्रमुख उदाहरण और वर्तमान समय में इसकी स्थिति पर विस्तार से चर्चा की गई है।  


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         लेफ्ट-विंग आतंकवाद की वैचारिक जड़ें   


लेफ्ट-विंग आतंकवाद का आधार 19वीं शताब्दी के विचारकों, विशेष रूप से  कार्ल मार्क्स  और  फ्रेडरिक एंगेल्स  की विचारधाराओं में मिलता है।  

1.  मार्क्सवाद :  

   - कार्ल मार्क्स का मानना था कि पूंजीवादी व्यवस्था का स्वभाव शोषणकारी है। यह समाज को "श्रमिक" और "पूंजीपति" के दो वर्गों में बांटता है।  

   - उन्होंने "क्रांति" को ही वर्ग संघर्ष समाप्त करने का रास्ता बताया।  

2.  लेनिनवाद :  

   - व्लादिमीर लेनिन ने मार्क्सवादी विचारों को व्यावहारिक रूप दिया और "हथियारों के बल पर सत्ता परिवर्तन" का समर्थन किया।  

   - उन्होंने रूस में  बोल्शेविक क्रांति  (1917) के माध्यम से समाजवादी राज्य की स्थापना की।  

3.  माओवाद :  

   - चीन के  माओ ज़ेडॉन्ग  ने मार्क्सवाद को ग्रामीण संघर्ष और किसानों के अधिकारों से जोड़ा। माओवाद ने क्रांति को दीर्घकालिक "पीपुल्स वार" के रूप में परिभाषित किया।  


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         लेफ्ट-विंग आतंकवाद का उदय: ऐतिहासिक उदाहरण   


1.  रूस: नारोदनया वोल्या (पीपल्स विल)   

   - रूस में 19वीं शताब्दी के अंत में यह आंदोलन शुरू हुआ।  

   - नारोदनया वोल्या ने 1881 में ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या की। उनका उद्देश्य शोषणकारी ज़ार शासन को उखाड़ फेंकना था।  

   - यह आंदोलन "प्रोपेगैंडा ऑफ द डीड" (हिंसक कृत्यों के जरिए प्रचार) का पहला बड़ा उदाहरण है।  


2.  इटली: रेड ब्रिगेड्स (Brigate Rosse)   

   - 1970 के दशक में यह समूह इटली में सक्रिय था।  

   - इसने पूंजीवादी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अपहरण, हत्या और बम विस्फोट किए।  

   - 1978 में इन्होंने इटली के पूर्व प्रधानमंत्री  एल्डो मोरो  का अपहरण और हत्या की।  


3.  जर्मनी: रेड आर्मी फैक्शन (RAF)   

   - जर्मनी में यह समूह 1970-80 के दशक में "बादर-मीनहॉफ ग्रुप" के नाम से जाना गया।  

   - इन्होंने अमेरिका और नाटो के ठिकानों को निशाना बनाया।  


4.  लैटिन अमेरिका: फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा   

   - क्यूबा में  फिदेल कास्त्रो  और  चे ग्वेरा  ने 1959 में क्रांति की और पूंजीवादी सरकार को उखाड़ फेंका।  

   - इनकी सफलता ने लैटिन अमेरिका में कई वामपंथी गुरिल्ला आंदोलनों को प्रेरित किया, जैसे कोलंबिया का  FARC ।  


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         भारत में लेफ्ट-विंग आतंकवाद: नक्सलवाद   


 नक्सलवाद  भारत में लेफ्ट-विंग आतंकवाद का सबसे बड़ा रूप है। यह आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के  नक्सलबाड़ी  गांव से शुरू हुआ, जब किसानों ने भूमि सुधार और उनके अधिकारों के लिए विद्रोह किया।  

1.  नेतृत्व :  

   - चारु मजूमदार और कानू सान्याल इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे।  

2.  मुख्य उद्देश्य :  

   - भूमि का पुनर्वितरण, जातिगत असमानता को खत्म करना और साम्यवाद की स्थापना।  

3.  प्रमुख घटनाएं :  

   - 2008 में छत्तीसगढ़ के  दंतेवाड़ा  जिले में नक्सलियों ने 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या की।  

   - झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में नक्सलवादी गतिविधियां सक्रिय हैं।  


         भारत में सरकार की प्रतिक्रिया   

- केंद्र सरकार ने "ऑपरेशन ग्रीन हंट" जैसे अभियानों के जरिए नक्सलवादियों पर दबाव बनाया।  

-  पंचायती राज  और ग्रामीण विकास परियोजनाओं के जरिए इन क्षेत्रों में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी गई।  


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         आज के दौर में लेफ्ट-विंग आतंकवाद   


आज लेफ्ट-विंग आतंकवाद ने अपना स्वरूप बदल लिया है।  

1.  एशिया में माओवादी आंदोलन :  

   - नेपाल में  माओवादी विद्रोह  ने 2006 में राजशाही को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई।  

   - फिलीपींस में "न्यू पीपल्स आर्मी" (NPA) सक्रिय है।  

2.  लैटिन अमेरिका :  

   - कोलंबिया का  FARC  और ब्राजील के कई वामपंथी समूह अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में हिंसा कर रहे हैं।  

3.  यूरोप :  

   - ग्रीस और तुर्की में कुछ वामपंथी उग्रवादी समूह सक्रिय हैं।  


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         लेफ्ट-विंग आतंकवाद के कारण   


1.  आर्थिक असमानता :  

   - गरीब और वंचित वर्ग के शोषण के कारण यह समस्या उत्पन्न होती है।  

2.  जातिगत और सामाजिक भेदभाव :  

   - भारत जैसे देशों में वंचित जातियों और जनजातियों के बीच विद्रोह का प्रमुख कारण।  

3.  सरकारी नीतियों की विफलता :  

   - भूमि सुधारों की असफलता और विकास परियोजनाओं का अभाव।  


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         लेफ्ट-विंग आतंकवाद से निपटने के उपाय   


1.  आर्थिक विकास :  

   - वामपंथी विचारधारा से प्रेरित समूहों को आर्थिक सशक्तिकरण के जरिए मुख्यधारा में लाना।  

2.  शिक्षा और जागरूकता :  

   - वंचित समुदायों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना।  

3.  सुरक्षा बलों की भूमिका :  

   - नक्सल प्रभावित इलाकों में सशस्त्र बलों की उपस्थिति बढ़ाना।  

4.  सामाजिक समावेशन :  

   - दलितों और आदिवासियों के लिए विशेष योजनाएं।  

लेफ्ट-विंग आतंकवाद एक जटिल समस्या है, जो आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक असमानताओं से उपजती है। इसकी जड़ें गहरी हैं, और इसका समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से संभव नहीं है। इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें विकास, शिक्षा और सामाजिक समावेशन के साथ-साथ न्याय और समानता की भावना को बढ़ावा दिया जाए।