मैं अपरिभाषित

 हूँ

मैं चलता हूँ, तो हवा भी लय में बहती है,
हर क़दम में धुन है, हर गति में कविता।
ना कोई लड़खड़ाहट, ना कोई भ्रम,
बस एक सधा हुआ प्रवाह, बस मैं।

मेरा मन— लोचदार, पर अटूट,
धधकती आग भी इसे मोड़ नहीं सकती।
संघर्ष इसे तराशता है,
पर इसे कभी तोड़ नहीं सकता।

मेरी आत्मा— राख से जन्मी,
हर हार में एक नयी उड़ान देखती है।
गिरकर मुस्कुराना,
यही तो मेरी पहचान है।

और मेरा हृदय?
यह कवि की कलम से जन्मा है,
जो इस कठोर दुनिया में भी
हर एहसास को जीवंत कर देता है।

मैं सिर्फ़ मज़बूत नहीं, मैं सम्पूर्ण हूँ।
योद्धा की दृढ़ता, संत की स्थिरता,
कवि की अभिव्यक्ति, और अनंतता की चेतना।


तपस्या

बड़ी तपस्या के बाद भी राह खोजता रहा,
उस तप का फल न था जो मेरा हक़ था।

जीवन की तपस्या से अब तक ना मिला वो सफलता,
जो मेरे सपनों का था वह अभी तक अधूरा रहा।

बहुत तप की रौशनी ने दिखलाया सफर,
पर वो मन्जिल थी दूर, जो कभी न मिली यार।

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...