उस तप का फल न था जो मेरा हक़ था।
जीवन की तपस्या से अब तक ना मिला वो सफलता,
जो मेरे सपनों का था वह अभी तक अधूरा रहा।
बहुत तप की रौशनी ने दिखलाया सफर,
पर वो मन्जिल थी दूर, जो कभी न मिली यार।
कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...
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