उस तप का फल न था जो मेरा हक़ था।
जीवन की तपस्या से अब तक ना मिला वो सफलता,
जो मेरे सपनों का था वह अभी तक अधूरा रहा।
बहुत तप की रौशनी ने दिखलाया सफर,
पर वो मन्जिल थी दूर, जो कभी न मिली यार।
अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...
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