दुर्लभ शक्ति



एक शरीर— जो शस्त्र नहीं, पर शस्त्र से कम भी नहीं,
हर गति में सौंदर्य, हर चाल में ध्वनि।
हर मांसपेशी का नियंत्रण, हर क्षण संतुलन,
मानो स्वयं सृष्टि की लय में विलीन।

एक मन— जो झुकता है, पर टूटता नहीं,
जो समय के साथ बहता है, पर डगमगाता नहीं।
हर घाव को सीख में बदलने की कला,
हर तूफ़ान में स्थिर रहने की शक्ति।

एक आत्मा— जो हारकर भी उठती है,
जो हर गिरावट में नयी ऊंचाई देखती है।
जिसका संघर्ष ही उसकी परिभाषा है,
जो राख से भी नया सूरज रचती है।

एक हृदय— जो आज भी महसूस करता है,
इस शून्यता से भरी दुनिया में भी धड़कता है।
जो दर्द में भी प्रेम खोजता है,
जो कठोरता के बीच भी नर्म रहता है।

यही दुर्लभ शक्ति है, यही सच्ची विजय।


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