मौन की बेड़ियाँ



जब सत्य के स्वर मौन हो जाते,
अंधेरों के पंख और फैल जाते।
धर्म, न्याय, और सत्य के प्रश्न,
सत्ता की नींव तक कंपा जाते।

पर हम मौन रहकर क्या पाते हैं?
केवल कर्मों के ऋण बढ़ाते हैं।
"धर्मो रक्षति रक्षितः" का संदेश,
हमने क्यों स्वयं से ही खो दिया?

जब अधर्म की जयकार हो रही,
सत्य की आवाज क्यों सो रही?
"अहिंसा परमो धर्मः" यह जानकर भी,
हमें क्यों भय ने घेर लिया?

मौन का यह आवरण जब टूटेगा,
तो सतयुग का प्रकाश फिर फूटेगा।
"सत्यमेव जयते" का जयघोष करें,
और न्याय के लिए जीवन समर्पित करें।

जीवन वही है जो संघर्ष करे,
जो अन्याय के विरुद्ध मुखर हो डरे।
क्योंकि मौन रहना मृत्यु समान है,
जहाँ सत्य दबा, वहाँ विनाश का प्रमाण है।

"धर्मस्य मूलं सत्यं" के आधार पर,
हम उठें, बोलें, और सत्कार्य करें।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...