: "जो तुम जानते हो, वही लिखो"


"जो तुम जानते हो, वही लिखो," यही है जीवन का सत्य,
पर इसे समझो गहरे, ना यह केवल व्यक्तिगत कथा का हल है।
मुझे केवल अपनी ज़िन्दगी की बातें नहीं लिखनी,
मुझे उन अनुभवों को शब्दों में पिरोकर कहानी बनानी है।

जो मैंने देखा, जो महसूस किया, वही मेरा सच है,
लेकिन उस सच को जब कल्पना के रंग से रंगता हूँ,
तो वह नए संसार का रूप लेता है,
जहाँ मेरी आंतरिक समझ से उभरती हर रचना असलियत बन जाती है।

मुझे सिर्फ खुद की कहानी नहीं लिखनी,
बल्कि उन विचारों को भी व्यक्त करना है, जो कभी खुद पर नहीं आए।
सिर्फ वही नहीं जो मैंने जीया, बल्कि जो महसूस किया,
वही शब्दों में ढलकर, हर विचार की गहराई को जगाता है।




मैं, ब्रह्मांड का अंश, ब्रह्मांड मुझमें

मैं, एक अणु, जो ब्रह्मांड में विचरता, ब्रह्मांड का अंश, जो मुझमें बसता। क्षितिज की गहराई में, तारे की चमक में, हर कण में, हर क्ष...