सफलता, निर्ममता और सुख का सत्य


सफलता,
यह मेरे परिभाषित किए गए मार्ग की छाया है।
यह दूसरों की परिभाषाओं में नहीं छिपती,
बल्कि मेरी अपनी सोच में खिलती है।
मैंने समझा है,
कि इसे पाने के लिए
दुनिया के मानदंडों को छोड़कर,
अपनी राह खुद बनानी होती है।

निर्ममता,
यह केवल एक आड़ नहीं,
बल्कि वह शक्ति है,
जो मुझे नतीजों से मुक्त करती है।
मैंने सीखा है,
कि जब मैं परवाह करना छोड़ देता हूँ,
तो मेरा मन निर्मम नहीं,
बल्कि हल्का हो जाता है।

सुख,
यह उस क्षण में है
जब मैं स्वीकार करता हूँ
कि नतीजे मेरे नहीं हैं।
मैंने प्रयास किया,
पर उसका फल
जीवन के हाथों में छोड़ दिया।
सच तो यह है,
कि जब मैं खुद को समर्पण करता हूँ,
तब ही असली शांति पाता हूँ।

अब, मैं जीता हूँ,
अपनी परिभाषाओं के साथ,
अपने प्रयासों में डूबकर।
मैं नतीजों की परवाह नहीं करता,
क्योंकि मैंने जाना है,
कि जीवन की खूबसूरती,
मेरे नियंत्रण से परे है।

सफलता मेरी सोच में है,
निर्ममता मेरी शक्ति है,
और सुख,
मेरा जीवन का सच्चा समर्पण।


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