हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप: शक्ति और भक्ति के प्रतीक


भगवान हनुमान केवल एक भक्त ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साकार रूप हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और ग्रंथों में मिलता है, जिनमें प्रत्येक स्वरूप की अपनी विशिष्टता और महिमा है। हनुमान जी के ये रूप न केवल उनके विराट स्वरूप को दर्शाते हैं, बल्कि भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए विभिन्न अवसरों पर प्रकट हुए।

हनुमान जी के विभिन्न रूप:

१) द्वात्रिंश भुजा हनुमान (३२ भुजाओं वाला स्वरूप)

इस महाशक्तिशाली रूप में हनुमान जी के ३२ भुजाएँ हैं, जिनमें प्रत्येक में एक विशेष अस्त्र-शस्त्र विद्यमान है। यह उग्र (प्रचंड) स्वरूप सम्राट सोमदत्त द्वारा पूजित था, जिन्होंने इसकी आराधना से अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया।

संस्कृत श्लोक:
"वीराय च महाकायाय भक्तानुग्रह कारिणे।
चतुस्त्रिंशत्भुजायैव नमोऽस्तु कपिसत्तमे॥"

(अर्थ: हे महाकाय हनुमान, जो भक्तों पर अनुग्रह करते हैं और ३२ भुजाओं से युक्त हैं, आपको मेरा नमन।)


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२) अष्टादश भुजा हनुमान (१८ भुजाओं वाला स्वरूप)

इस रूप में हनुमान जी के १८ भुजाएँ हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र धारण किए हुए हैं। यह रूप महर्षि दुर्वासा द्वारा पूजित था, जिन्होंने इससे अपार सिद्धियाँ प्राप्त कीं।

संस्कृत श्लोक:
"अष्टादशभुजं देवं भक्तानामभयप्रदम्।
दुर्वासा पूजितं पूर्वं नमामि पवनात्मजम्॥"

(अर्थ: जो १८ भुजाओं से युक्त हैं, भक्तों को अभय प्रदान करने वाले हैं, महर्षि दुर्वासा द्वारा पूजित हैं, उन पवनपुत्र हनुमान को नमन।)


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३) विंशति भुजा हनुमान (२० भुजाओं वाला स्वरूप)

इस स्वरूप में भगवान हनुमान के २० भुजाएँ होती हैं, जो २० अस्त्रों को धारण किए हुए हैं। इस रूप का दर्शन स्वयं ब्रह्मा जी और सप्तऋषियों को प्राप्त हुआ था। इसे हनुमान जी का सार्वभौमिक रूप भी कहा जाता है।

संस्कृत श्लोक:
"विंशति भुजसंयुक्तं ब्रह्मादिभिः सुपूजितम्।
सप्तर्षिभिर्दृष्टपूर्वं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥"

(अर्थ: जो २० भुजाओं से युक्त हैं, ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा पूजित हैं और सप्तऋषियों द्वारा देखे गए हैं, उन हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ।)


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४) षण्मुख हनुमान (छह मुखों वाला स्वरूप)

इस रूप में हनुमान जी के छह मुख हैं, जो विभिन्न दिशाओं की ओर स्थित हैं:

1. हनुमान (पूर्व)


2. नरसिंह (दक्षिण)


3. गरुड़ (पश्चिम)


4. वराह (उत्तर)


5. हयग्रीव (ऊर्ध्व)


6. अग्नि (अधोमुख)



यह स्वरूप हजारों भुजाओं वाला होता है, जिसमें हजारों अस्त्र-शस्त्र होते हैं। इसे "नवखण्ड हनुमान" भी कहा जाता है।

संस्कृत श्लोक:
"षण्मुखं कपिरूपं च सहस्त्रबाहु संयुतम्।
नवखण्डाधिपं नित्यं नमामि कपिनायकम्॥"

(अर्थ: जो छह मुखों से युक्त हैं, हजारों भुजाओं से विभूषित हैं और नौ खंडों के अधिपति हैं, उन कपिनायक को नमन।)


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५) सप्तमुख हनुमान (सात मुखों वाला स्वरूप)

इस स्वरूप में भगवान हनुमान के सात मुख होते हैं:

1. हनुमान


2. नरसिंह


3. गरुड़


4. वराह


5. हयग्रीव


6. सूर्य-गाय मुख


7. मानव मुख



इस रूप में हनुमान जी की १४ भुजाएँ होती हैं और वे सप्तऋषियों के समक्ष प्रकट हुए थे।

संस्कृत श्लोक:
"सप्तमुखाय देवाय चतुर्दशभुजाय च।
सप्तर्षिभिः स्तुतायैव नमो हनुमते नमः॥"

(अर्थ: जो सात मुखों से युक्त हैं, १४ भुजाओं से विभूषित हैं, सप्तऋषियों द्वारा स्तुति किए गए हैं, उन हनुमान जी को नमन।)


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६) दक्षिणमुखी हनुमान (दक्षिणमुख हनुमान)

इस स्वरूप में हनुमान जी दक्षिण दिशा की ओर मुख करके स्थित होते हैं, जो यमराज से संबंधित दिशा है। इस रूप की उपासना मृत्यु भय से मुक्ति और समस्त कष्टों को दूर करने के लिए की जाती है।

संस्कृत श्लोक:
"दक्षिणाभिमुखं देवं यमदूत विनाशकम्।
सर्वोपद्रव संहर्त्रं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥"

(अर्थ: जो दक्षिणमुखी हैं, यमराज के दूतों का नाश करने वाले हैं और समस्त उपद्रवों को नष्ट करने वाले हैं, उन हनुमान को प्रणाम।)


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७) एकादशमुख हनुमान (११ मुखों वाला स्वरूप)

इस रूप में भगवान हनुमान के ११ मुख और २२ भुजाएँ होती हैं, जिनमें प्रत्येक में एक दिव्य अस्त्र होता है। इस स्वरूप की उपासना करने से मोक्ष प्राप्ति होती है और भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा प्राप्त होती है।

११ मुख:

1. हनुमान (पूर्व)


2. परशुराम (आग्नेय)


3. नरसिंह (दक्षिण)


4. गणपति (नैऋत्य)


5. गरुड़ (पश्चिम)


6. भैरव (वायव्य)


7. कुबेर (उत्तर)


8. शिव (ईशान)


9. हयग्रीव (ऊर्ध्व)


10. अग्नि


11. श्रीराम



संस्कृत श्लोक:
"एकादशमुखं देवं द्वाविंशतिभुजायुतम्।
शिवविष्णु ब्रह्म पूज्यं हनुमन्तं नमाम्यहम्॥"

(अर्थ: जो ११ मुखों और २२ भुजाओं से युक्त हैं, शिव, विष्णु और ब्रह्मा द्वारा पूजित हैं, उन हनुमान को नमन।)


भगवान हनुमान के विभिन्न स्वरूप उनकी अपरंपार शक्ति, भक्ति और दिव्यता को दर्शाते हैं। उनकी आराधना जीवन में शक्ति, साहस, निडरता और मोक्ष का मार्ग प्रदान करती है। भक्त अपने उद्देश्य के अनुसार इन स्वरूपों की पूजा कर सकते हैं और भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

"रामदूतं महावीर्यं हनुमन्तं नमाम्यहम्।"
(अर्थ: मैं रामदूत, महावीर्यवान हनुमान को नमन करता हूँ।)


हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप: शक्ति और भक्ति के प्रतीक

भगवान हनुमान केवल एक भक्त ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साकार रूप हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और ग्रंथों में मिलता है...