सच्ची महानता"



सच्ची महानता दूसरों की सराहना में नहीं,
बल्कि आत्मनिर्भरता और अपनी पहचान में बसी होती है।
जब हम खुद पर विश्वास रखते हैं,
तब हमें किसी से प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।

महानता वह नहीं जो बाहरी दुनिया हमें देती है,
बल्कि वह है जो हम अपने अंदर महसूस करते हैं।
जब हम अपनी खुद की राह पर चलते हैं,
तब ही हम सच्चे अर्थ में महान होते हैं।

जो आत्मनिर्भर होते हैं, वही सच्चे रूप में मजबूत होते हैं,
क्योंकि वे अपने फैसलों के लिए खुद जिम्मेदार होते हैं।
बाहरी अनुमोदन से नहीं,
बल्कि अपने आंतरिक विश्वास से वे महानता को प्राप्त करते हैं।

सच्ची महानता यही है,
जब हम अपनी पहचान से जीते हैं,
न कि दूसरों के नजरिए से।
आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता ही वह रास्ता है,
जो हमें असली महानता की ओर ले जाता है।


"प्रेम का दिव्यता रूप"

प्रेम ही असली चीज़ है, जहाँ मन का हर बीज है। कामनाओं से परे की धारा, जहाँ आत्मा ने खुद को पुकारा। जब स्पर्श हो बिना वासना की छाया, तो प्रेम ...