आत्मा और शरीर का अभिन्न संगम



आत्मा और देह, न द्वैत है न भिन्न,
एक ही तत्त्व, अदृश्य और दृश्य का मिलन।
विचार, भावनाएँ, स्पंदन और स्वर,
सब मिलकर गढ़ते हैं जीवन का सफर।

मन के विषाद से तन पर आघात,
यह केवल माया नहीं, सत्य की बात।
संकल्पों की शक्ति, दृढ़ता का संधान,
रचती है भीतर नव ऊर्जा का प्रवाह महान।

क्या नकारात्मक चिंतन से नहीं होती हानि,
रोग-प्रतिकारक शक्ति में आती कमी अपार।
क्या चिंताओं का जाल, उद्देश्य की कमी,
तन को थकावट और मन को लाए नहीं भार।

विपत्ति, वेदना, और अव्यक्त क्रोध का भार,
कसता है वक्षस्थल, आतुर कर देता है।
क्या अनसुलझे विषाद से नहीं मिलता संकट,
पाचन में अवरोध, जीवन में विषाद का अंधकार।

काया का कष्ट, मन को दुख में बाँधता,
पीड़ा की लहरें हृदय में गूंज उठतीं।
दृष्टिकोण में विष, पीड़ा को करता प्रखर,
संपूर्ण अस्तित्व को बनाता पराभूत।

स्मरण रहे, मन, तन, और आत्मा का समागम,
एक अखंड चक्र में एक दूसरे का आलिंगन।
भाव, विचार, और संवेदन का संगम,
निर्मित करता है हमारे अस्तित्व का संग्राम।

अतः एकत्व में देखो, यह नहीं केवल भास,
आत्मा, देह, मन—एक अखंडित प्रकाश।
समरसता में है जीवन का आधार,
अखंड चैतन्य का यह अद्भुत विस्तार।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...