वेदांत कहता है—
"स्वयं को चुनना" मात्र अहंकार का विस्तार हो सकता है,
क्योंकि "मैं" और "मेरा" की सीमा में फँसकर,
असली सत्य हमसे दूर रह जाता है।
पर जब मैं श्रेयस को चुनता हूँ,
जो मात्र मेरी इच्छा नहीं, बल्कि सच्चा धर्म है,
तब मैं केवल स्वयं का नहीं,
सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण करता हूँ।
श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतः तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः।
(कठोपनिषद् 1.2.2)
"मनुष्य के सामने श्रेयस और प्रेयस—दो मार्ग आते हैं,
विवेकी व्यक्ति श्रेयस को चुनता है, जबकि अज्ञानी प्रेयस में फँस जाता है।"
प्रेयस—वो जो सुखद है, पर क्षणिक है।
श्रेयस—वो जो सही है, पर कठिन है।
जब मैं केवल स्वयं को चुनता हूँ,
तो यह मेरी सीमित बुद्धि की इच्छा है।
पर जब मैं सही को चुनता हूँ,
तो मैं सत्य के साथ चलता हूँ, जो मेरी आत्मा को मुक्त करता है।
अतः, वेदांत हमें सिखाता है—
स्वयं को चुनो, पर अहंकार से नहीं,
बल्कि उस सच्चाई से,
जो केवल तुम्हारे लिए नहीं,
बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के लिए कल्याणकारी हो।