"एक रात तांत्रिक ऊर्जा के साथ: सम्भोग से ध्यान की ओर मेरी यात्रा"
मैंने सेक्स को हमेशा एक गहराई से महसूस किया है —
वो सिर्फ शरीर की भूख नहीं थी मेरे लिए,
बल्कि एक रहस्यमयी खिड़की थी किसी और ही दुनिया की ओर।
कई बार जब मैं किसी स्त्री को प्रेम से, मौन से छूता था —
मुझे लगता था जैसे कोई ऊर्जा लहर बनकर उठ रही है।
कोई हलचल नहीं,
कोई शब्द नहीं —
सिर्फ दो साँसों का संगीत।
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ओशो की छाया में
जब मैं पहली बार पुणे के ओशो आश्रम पहुँचा,
मुझे लगा जैसे मैं किसी और ही ग्रह पर आ गया हूँ।
लोग निर्वस्त्र धूप में ध्यान कर रहे थे,
कोई किसी को गले लगाकर रो रहा था,
कोई प्रेम से नाच रहा था —
कोई सेक्स को गाली नहीं दे रहा था,
बल्कि पूजा की तरह जी रहा था।
वहीं मैंने पहली बार जाना —
सेक्स को दबाने की ज़रूरत नहीं है,
बल्कि उसे जागरूकता के साथ जिया जा सकता है।
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रिशिकेश का अनुभव
एक बार मैं ऋषिकेश में एक साधिका से मिला —
उसकी आँखों में ध्यान था, शरीर में आग थी, और छुअन में शांति।
उस रात हमने कोई योजना नहीं बनाई।
कोई हड़बड़ी नहीं थी।
हम सिर्फ आँखों में देखते रहे, साँस लेते रहे, और मौन में बहते रहे।
हम दोनों के बीच कोई कामुकता नहीं,
बल्कि एक अजीब-सी ईश्वरीय ऊर्जा थी।
मैंने देखा कैसे मेरी धड़कनें धीमी होने लगीं,
मेरा मन रुक गया,
और एक क्षण ऐसा आया —
जैसे मैं उसके शरीर में नहीं,
बल्कि अपने ही अंतरिक्ष में उतर गया।
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क्या यही तांत्रिक सेक्स था?
बिना कुछ जाने,
बिना कोई तकनीक सीखे —
मुझे जो मिला वो शायद वही था
जिसे तांत्रिक परंपरा संभोग से समाधि कहती है।
मैंने महसूस किया:
मेरे भीतर कोई ऊर्जा उठ रही है (शायद कुंडलिनी?)
कोई पुराना डर पिघल रहा था
मेरा अहंकार, मेरी इच्छा — सब मौन हो रहे थे
और सेक्स, एक माध्यम बन गया अपने आप में लौटने का
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सेक्स, जब साधना बन जाए
अब मैं किसी स्त्री के साथ एक आम "सेक्स एक्ट" नहीं चाहता।
मैं चाहता हूँ — मौन, गहराई, ध्यान, जुड़ाव।
ओशो कहते हैं:
> “अगर तुम पूरी तरह जागरूक होकर सम्भोग करो,
तो वही तुम्हारी सबसे बड़ी ध्यान यात्रा बन सकती है।”
मैंने इसे जीकर देखा है।
और अब मैं सेक्स को सिर्फ एक 'एक्ट' नहीं मानता —
बल्कि एक द्वार,
जिससे होकर मैं अपने आप में प्रवेश करता हूँ।
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यह सभी के लिए नहीं है
नहीं, यह किसी फैंटेसी की तरह नहीं है।
तांत्रिक सेक्स बहुत गहराई माँगता है:
तुम्हारा अहंकार पिघले
तुम अपने शरीर से प्रेम करो
और स्त्री को ‘वस्तु’ नहीं, देवी मानो
अगर तुम सिर्फ भोग चाहते हो,
तो यह तुम्हारे लिए नहीं है।
लेकिन अगर तुम जागना चाहते हो —
तो यह रास्ता अद्भुत है।
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आख़िरी बात
सेक्स जब शरीर से ऊपर उठे
और मन की सीमाओं को पार करे,
तभी वह तुम्हें शून्य की ओर ले जा सकता है।
और उस शून्य में —
तुम्हें मिलेगा ध्यान,
और शायद… ईश्वर।
,.....
ओशो कहते हैं:
> “सम्भोग से डरना नहीं, उसे होश के साथ जीओ —
सेक्स, जब ध्यान बन जाए
अब मैं समझ पाया हूँ कि सेक्स केवल उत्तेजना नहीं है —
ये ध्यान का पहला द्वार हो सकता है, अगर हम उसे होशपूर्वक जिएं।
तांत्रिक सेक्स का अर्थ यह नहीं कि आप किसी रिचुअल में उलझें —
बल्कि यह है कि आप किसी के साथ इतने गहराई से जुड़ें,
कि दोनों का अहंकार पिघल जाए
और केवल मौन बचे।
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एक चेतावनी
तांत्रिक सेक्स:
ना तो फ़ैंटेसी है
ना कोई पॉर्नोग्राफ़ी
ये साधना है, समर्पण है
अगर तुम सिर्फ भोग की तलाश में हो, तो ये रास्ता नहीं है।
लेकिन अगर तुम अपने भीतर की देवी/देवता को जगाना चाहते हो,
तो यही तुम्हारा प्रवेश-द्वार बन सकता है।
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अंत में…
मेरी अपनी यात्रा का एक पड़ाव है।
शायद तुम इससे सहमत हो, शायद नहीं।
मगर जो मैंने पुणे, ऋषिकेश और अपने अंतरतम में देखा,
वो मैं बांटना चाहता था — बिना डर के, बिना नकाब के।
अगर तुम्हारे भीतर भी कभी सेक्स एक ध्यान की तरह प्रकट हो,
तो उसे दबाना मत —
शायद वही तुम्हारा पहला ध्यान हो।
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