मैं बनूंगा वो,



मैं बनूंगा वो इंसान, जो परवाह करता है,
जिसके दिल में हर जज़्बात का सैलाब बहता है।
जो बिना हिचक हर कोशिश करता रहे,
और बिना शर्त मोहब्बत का दिया जलाता रहे।

मैं बनूंगा वो, जो अपनी सच्चाई को न छुपाए,
जो अपने एहसासों की गहराई से न घबराए।
जो उम्मीद की चमक से दुनिया को रौशन करे,
और हर दर्द को अपने आँसुओं में बहा दे।

मैं बनूंगा वो, जो इस दुनिया की नरमी पर यकीन रखे,
जो इंसानों की भलाई में अपना दिल लगाए।
जो खुली बाहों से हर एक को अपनाए,
और विश्वास के धागे से रिश्ते बनाए।

मैं बनूंगा वो, जो डर के पीछे न छिपे,
जो हर मौके पर अपना साहस दिखाए।
जो हर बार दुनिया को यह याद दिलाए,
कि नर्मी भी ताकत का रूप हो सकती है।

मैं बनूंगा वो इंसान, जो हर दिल को अपना एहसास दे,
जो हर आंसू को मुस्कान में बदल दे।
क्योंकि इस बेरहम दुनिया को अब जरूरत है,
परवाह करने वालों की, नर्म दिल वालों की।

सच मानो, मैं वो बनूंगा,
जो दुनिया की कठोरता में भी अपनी नरमी न खोए।
जो हर दर्द सहकर भी इंसानियत का दीप जलाए,
और अपने होने का अर्थ हर दिल में छोड़ जाए।


विनम्रता और कर्म

विनम्रता का दीप विनम्रता से मिटता अहंकार, हरि द्वार पर झुके यह संसार। गर्व का तिलक जब छूटे, जीवन का अर्थ तभी फूटे। नीच झुककर ही ऊँचाई मिले, ...