Tuesday 19 March 2013

लड़ाई



लड़ाई

अपने आप से लड़ रहा हूं मै
एक दोष है मुझमे जिसे दूर करना चाहता हूं
मगर न जाने क्यों अपने आप से हार जाता हूं मै
अपने हाथ से ही अपने आप को मारता जा रहा हूं

ये कैसी लड़ाई है  ?
जिसमे जीत भी मेरी, और हार भी मेरी
क्या कबूल करूं ?

ना जीत चाहता हूं ना हार
फिर भी न जाने क्यो
अपने आप से लड़ रहा हूं मैं

दीप जले तो जीवन खिले

अँधेरे में जब उम्मीदें मर जाएं, दुखों का पहाड़ जब मन को दबाए, तब एक दीप जले, जीवन में उजाला लाए, आशा की किरण जगमगाए। दीप जले तो जीवन खिले, खु...