छाता और आस्था


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बरसात जब थमती है,  
छाता एक बोझ बन जाता है।  
जैसे जब स्वार्थ समाप्त हो जाए,  
निष्ठा का अंत हो जाता है।  

फिर वही छाता जो था सुरक्षा का ढाल,  
अब घर के कोने में बेजान सा पड़ा है।  
कोई उसे नहीं चाहता, जब तक फिर से,  
बादल न बरसने लगें आसमान में।  

पर जब कोई उसे खोजने निकलता है,  
वो छाता फिर कहीं खो चुका होता है।  
याद आती है उसकी, पर छाता अब,  
कभी नहीं लौटता उन्हीं हाथों में।  

वो अपनी प्रकृति में अटल है,  
जो उसे अपनाए, उसकी सेवा में तत्पर है।  
अब वो किसी और की छांव बना,  
उसे नया विश्वास दे रहा है।  

पर इस बार वो छाता सतर्क है,  
समर्पण के संग परिपूर्ण है।  
हर मुस्कान सच्ची नहीं होती,  
कुछ बस जलन का आवरण हैं।  
हर वार का प्रतिकार आवश्यक है,  
तभी संतुलन बना रहता है संसार में।  


प्रेम का सच्चा रूप


जब तुम प्रेम से मोह और आसक्ति हटाते हो,  
जब तुम्हारा प्रेम शुद्ध, निष्कलंक, निराकार हो,  
जब तुम प्रेम में केवल देते हो, माँगते नहीं,  
जब प्रेम केवल एक देना हो, लेना नहीं,  

जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी नहीं,  
जब तुम खुश होते हो, क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया,  
तब ही प्रेम का सच्चा रूप प्रकट होता है,  
तब ही प्रेम का असली मतलब समझ आता है।  

तब प्रेम में कोई शर्त नहीं होती,  
तब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता,  
तब प्रेम केवल एक अनुभव होता है,  
तब प्रेम केवल एक संवेदना होती है।  

यह प्रेम है, जो आत्मा को मुक्त करता है,  
यह प्रेम है, जो दिल को हल्का करता है,  
यह प्रेम है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है,  
यह प्रेम है, जो हमें सच्चे सुख का एहसास कराता है।  

प्रेम में जब यह भाव आते हैं,  
तब जीवन में एक नई रोशनी जगमगाती है,  
तब हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है,  
तब हर पल एक नई कविता बन जाता है।  

प्रेम का यही सच्चा रूप है,
जो हर दिल को छूता है,
जो हर आत्मा को जीता है,
जो हमें इंसान से इंसान बनाता है।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...