छाता और आस्था


L

बरसात जब थमती है,  
छाता एक बोझ बन जाता है।  
जैसे जब स्वार्थ समाप्त हो जाए,  
निष्ठा का अंत हो जाता है।  

फिर वही छाता जो था सुरक्षा का ढाल,  
अब घर के कोने में बेजान सा पड़ा है।  
कोई उसे नहीं चाहता, जब तक फिर से,  
बादल न बरसने लगें आसमान में।  

पर जब कोई उसे खोजने निकलता है,  
वो छाता फिर कहीं खो चुका होता है।  
याद आती है उसकी, पर छाता अब,  
कभी नहीं लौटता उन्हीं हाथों में।  

वो अपनी प्रकृति में अटल है,  
जो उसे अपनाए, उसकी सेवा में तत्पर है।  
अब वो किसी और की छांव बना,  
उसे नया विश्वास दे रहा है।  

पर इस बार वो छाता सतर्क है,  
समर्पण के संग परिपूर्ण है।  
हर मुस्कान सच्ची नहीं होती,  
कुछ बस जलन का आवरण हैं।  
हर वार का प्रतिकार आवश्यक है,  
तभी संतुलन बना रहता है संसार में।  


No comments:

Post a Comment

Thanks

मेरे विचारों का अंश

यदि मैं दे दूं अपना तन, तो लौट सकता है वह पलछिन। पर यदि मैं दे दूं अपने विचार, तुम ले जाओगे मेरा अनमोल संसार। शब्दों में छुपा है मेरा मन, भा...