प्रेम का सच्चा रूप


जब तुम प्रेम से मोह और आसक्ति हटाते हो,  
जब तुम्हारा प्रेम शुद्ध, निष्कलंक, निराकार हो,  
जब तुम प्रेम में केवल देते हो, माँगते नहीं,  
जब प्रेम केवल एक देना हो, लेना नहीं,  

जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी नहीं,  
जब तुम खुश होते हो, क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया,  
तब ही प्रेम का सच्चा रूप प्रकट होता है,  
तब ही प्रेम का असली मतलब समझ आता है।  

तब प्रेम में कोई शर्त नहीं होती,  
तब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता,  
तब प्रेम केवल एक अनुभव होता है,  
तब प्रेम केवल एक संवेदना होती है।  

यह प्रेम है, जो आत्मा को मुक्त करता है,  
यह प्रेम है, जो दिल को हल्का करता है,  
यह प्रेम है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है,  
यह प्रेम है, जो हमें सच्चे सुख का एहसास कराता है।  

प्रेम में जब यह भाव आते हैं,  
तब जीवन में एक नई रोशनी जगमगाती है,  
तब हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है,  
तब हर पल एक नई कविता बन जाता है।  

प्रेम का यही सच्चा रूप है,
जो हर दिल को छूता है,
जो हर आत्मा को जीता है,
जो हमें इंसान से इंसान बनाता है।

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