प्रकृति का अनुपम सौंदर्य



मनुष्य ने रची हैं अनेकों कृतियाँ,
मशीनें, इमारतें, और अभूतपूर्व कलाएँ।
पर इन सबके पार, जो खड़ा मुस्कुरा रहा है,
वह है प्रकृति, सृष्टि की सच्ची काया।

सूरज की पहली किरण जब धरती पर पड़े,
उसकी सुनहरी छवि को कौन रच सके?
बादलों का नृत्य और वर्षा की बूँदें,
इनकी ध्वनि से सुंदर कौन गीत गा सके?

पर्वतों की ऊँचाई और सागर की गहराई,
इनकी विशालता के आगे सब बौने नज़र आएँ।
हर पेड़ की छाया, हर फूल की खुशबू,
इनकी कोमलता को कोई कैसे रच पाए?

चाँदनी रात का उजाला, नदियों का बहाव,
पंछियों का संगीत, जंगलों का स्वाभाव।
यह सब है प्रकृति का अनुपम उपहार,
जिसके आगे हर मानव रचना बेकार।

मनुष्य ने बनाए महल और पुल,
पर प्रकृति ने दिए जंगल और झरने कुल।
हमने रची कल्पनाएँ, मशीनों की सीमाएँ,
पर प्रकृति ने रचा अनंत का गीत सुनाएँ।

तितलियों के रंग, मोर का नृत्य,
हर जीव में बसा सृष्टि का मंत्र।
आकाश का नीला और धरती का हरापन,
इन रंगों का मुकाबला कौन कर सकता है?

प्रकृति की कला में छिपा है ईश्वर का स्पर्श,
जो देता है जीवन को सच्चा उत्कर्ष।
उसकी रचनाओं का कोई सानी नहीं,
उसकी सादगी में भी छुपा है बेजोड़ सौंदर्य कहीं।

तो देखो, सुनो, और महसूस करो इस कला को,
जिसे किसी चित्रकार ने नहीं, सृष्टिकर्ता ने रचा।
प्रकृति का यह अनुपम सौंदर्य सिखाता है,
सादगी में ही छिपा है जीवन का असली मज़ा।


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