पारदर्शी कला का स्वप्न



मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसी कला का,
जो सत्य का आइना हो, छलावा नहीं।
जहां रंगों के बीच छिपा न हो संसार,
बल्कि हर रंग से झलके जीवन की कहानी।

एक ऐसी कला, जो पर्दों को हटाए,
जिसे देख हृदय सच्चाई को अपनाए।
जहां हर रेखा बोले अपने आप,
जहां हर छवि हो जीवन का आलाप।

न हो उसमें झूठ, न कोई आडंबर,
केवल सरलता का हो उसमें अंबर।
जहां हर छवि में दिखे प्रेम का प्रकाश,
और हर छाया में छुपे न हो कोई आश।

वह कला हो एक खिड़की सी निर्मल,
जहां से झांको तो दिखे जीवन का मंगल।
जहां हर दृश्य हो आत्मा का प्रतिबिंब,
जहां हर रचना हो समय का प्रतीक।

वह कला न सीमित हो किसी फ्रेम में,
न बंधे केवल शब्दों या रंगों के गेम में।
वह कला हो अंतर्मन का दर्पण,
जहां झलकता हो हर जीव का स्पंदन।

मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो न केवल सुंदर, बल्कि सच्ची हो।
जो दिखाए दुनिया को वैसी जैसी है,
और प्रेरित करे इसे वैसी बनाने की।

ऐसी कला, जो सृजन की आत्मा हो,
और जिससे झलके हर जीवन की छवि।
मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो पारदर्शी हो, और मुक्त की नवी।


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