सिधांत और नैतिकता के बीच,
आदतों के बंधन में बंधा एक मन,
मजबूर आदतें करती निर्णय,
जो टकराते अपने सिधांतों से हर क्षण।
मन के भीतर जलता युद्ध,
सत्य और आदतों की खींचातानी,
कभी जीतता सिधांत, कभी हार,
फैसलों की इस रणभूमि में जानी।
आदतें बन जाती जंजीर,
जिसमें फंसा रहता है मनुष्यता,
पर नैतिकता का दीपक जलता,
देता दिशा सत्य और अच्छाई की।
हर फैसला एक नई लड़ाई,
खुद से खुद की होती जंग,
मजबूरी में लिए निर्णय कभी,
कभी नैतिकता से उठते रंग।
यह युद्ध निरंतर चलता रहता,
सिधांतों और आदतों की लड़ाई,
जीत उसी की होती है अंत में,
जो अपने मन को सही राह दिखाए।