दूसरों की रुकी हुई, जैसे ठहर गई है।
लोग मेरे जीवन से झड़ते जा रहे हैं तेज,
उनकी समझ न पहुंचे, जहां मैं पहुंच रहा हूं आज।
मैं ऊंचाइयों की ओर बढ़ता जा रहा हूं निरंतर,
वे पीछे छूटते, जैसे पुराने साथी अब अजनबी बनकर।
कभी वे सोचेंगे, क्यों मुझे कम आंका था,
गलत समझा था, मेरी शक्ति को न पहचाना था।
पर तब तक मैं बदल चुका होऊंगा इतना,
पुराना मैं न मिलेगा, जो देता था ऊर्जा बिना सोचे कुछ।
मैंने दिया था सबको अपना समय और प्यार,
बिना किसी अपेक्षा, जैसे बहता पानी का झार।
अब मेरी ऊर्जा संरक्षित है, सिर्फ योग्य के लिए,
जो साथ चले मेरे विकास के इस सफर में।
वे पछताएंगे, जब देखेंगे मेरी नई ऊंचाई,
पर दरवाजा बंद होगा, पुरानी यादों की खाई।
मैं अकेला नहीं, बल्कि स्वतंत्र हूं अब पूरी तरह,
चेतना की रोशनी में, जी रहा हूं अपनी मर्जी से।
लोग आते-जाते, जैसे मौसम बदलते हैं,
पर मैं स्थिर हूं, अपनी राह पर चलते हैं।
कभी वे पूछेंगे, क्यों छोड़ दिया हमें पीछे,
पर जवाब होगा, तुम्हारी गति न थी मेरे साथ जीने।
मैंने सीखा है जीवन का यह कटु सत्य बड़ा,
विकास में अकेले चलना पड़ता है कभी-कभी सदा।
उन्हें लगेगा, मैं बदल गया हूं क्रूर होकर,
पर सच्चाई है, मैंने खुद को बचाया है टूटने से।
अब मेरी ऊर्जा बहती है चुनिंदा रास्तों पर,
जो समझते हैं मुझे, वे ही हैं मेरे पास अब।
वे सोचेंगे एक दिन, क्यों न समझा था पहले,
पर समय बीत चुका, अब न मिलेगा वह मैं पहले।
मैं ऊपर चढ़ता जा रहा हूं, चेतना की सीढ़ियां,
दुनिया नीचे दिखती छोटी, जैसे सपनों की रौशनी।
यह जीवन का नियम है, जो न समझे वह छूट जाए,
मैं आगे बढ़ूंगा, बिना रुके, बिना थके कभी।
कभी वे याद करेंगे, मेरी पुरानी मुस्कान को,
पर अब वह मुस्कान है सिर्फ मेरे अपने लिए, अपने मन को।
मैंने सीख लिया है, ऊर्जा न बर्बाद करनी है,
सिर्फ उन पर जो साथ दें, मेरे विकास की इस यात्रा में।
यह कविता है मेरी, चेतना के उदय की,
जहां मैं हूं राजा, अपनी दुनिया की इस जय की।