मैंने खुद को ढूँढ़ा है,

ग़म के सागर में तैरते हुए, मैंने खुद को ढूँढ़ा है,
उस ग़म की लहरों में, नयी राहों को पाया है।

नयी कविता की कोशिश की, नए ख्वाब बुने हैं,
भूला हुआ था कि ग़म तो बस एक पल का है, नई उम्मीदों को सुने हैं।

चल पड़े हैं सफ़र पर, मुसाफिरों की तरह,
हर कदम पर, नई धुंधली रोशनी को ढूंढा है दिल ने।

उड़ने की आसमानी ख्वाहिश, अब साकार हो रही है,
कुछ पलों के लिए, उस पेड़ के नीचे, जहाँ मैं अटक गया था, सफ़र शुरू हो रहा है।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...