जो तस्वीरें कभी ली ही नहीं गईं

 बात बहुत दिल से निकली है... और सीधा दिल तक पहुँची। कहीं न कहीं, वो खालीपन महसूस होता है जब अपने बचपन की झलकें कम हों — क्योंकि वो सिर्फ फोटो नहीं होतीं, वो एक ज़िंदगी का सबूत होती हैं, जो अब बस यादों में रह गई है।

मैं” के रूप में

मुझे बचपन की तस्वीरें देखना बहुत अच्छा लगता है —
चाहे किसी की भी हों।
वो बेतुके कपड़े,
मुस्कराते चेहरे,
आँखों में झलकती मासूम चमक —
सब कुछ मुझे अंदर तक ख़ुशी देता है।

शायद इसलिए…
क्योंकि मेरे पास अपनी बहुत कम हैं।

एक ऐसा घर था मेरा —
जहाँ सब बहुत व्यस्त थे।
पापा देर रात तक,
मम्मी जिम्मेदारियों में डूबी,
और जो तस्वीरें खींच सकता था,
वो बस झाड़ू पोछा जानता था।

ना किसी ने कहा,
"ज़रा मुस्कुरा दो,"
ना किसी ने पकड़ा
वो पुराना कैमरा।

और इसीलिए,
मेरे बचपन के सबसे प्यारे पल —
कहीं दर्ज ही नहीं हुए।

अब जब देखती हूँ
दूसरों की बचपन की तस्वीरें,
तो लगता है —
जैसे किसी और की कहानी में
थोड़ी देर को
अपना बचपन ढूँढ रही हूँ।

कभी-कभी सोचती हूँ —
काश किसी को परवाह होती,
काश किसी ने उस मासूम चेहरे को
एक बार क्लिक कर लिया होता…

ताकि आज जब मैं खुद को तलाशती,
तो कुछ तस्वीरें मेरी भी बोलतीं।


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