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सर्वहारा वर्ग की तानाशाही का मतलब
सर्वहारा वर्ग (Proletariat) वह वर्ग है जिसे साम्यवाद में श्रमिक वर्ग या मजदूर वर्ग कहा गया है। यह वर्ग उत्पादन के साधनों का स्वामी नहीं होता और पूंजीवादी व्यवस्था में शोषित माना जाता है।
- मार्क्स और एंगेल्स के अनुसार, सर्वहारा वर्ग को शोषण से मुक्त करने के लिए समाजवादी क्रांति अनिवार्य है।
- इस क्रांति के बाद "सर्वहारा वर्ग की तानाशाही" का उदय होता है, जहां मजदूर वर्ग सत्ता संभालता है।
- इस तानाशाही का उद्देश्य मौजूदा पूंजीवादी ढांचे को समाप्त करना और समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करना है।
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आतंक का सहारा लेने की व्याख्या
लेनिन का यह कथन इस विचार को दर्शाता है कि क्रांति के बाद सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए दमन और आतंक का उपयोग आवश्यक है। इसके पीछे तीन मुख्य कारण थे:
# 1. पूंजीवादी वर्ग का प्रतिरोध
क्रांति के बाद भी पूंजीवादी वर्ग या पुराने शासक वर्ग सत्ता छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता।
- ये वर्ग क्रांति को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रचते हैं।
- लेनिन का मानना था कि इन वर्गों को पूरी तरह खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाने जरूरी हैं।
# 2. सत्ता को स्थिर करना
एक नई विचारधारा पर आधारित सरकार को स्थिर करने के लिए जबरदस्ती और आतंक का सहारा लिया जाता है।
- जब समाज अचानक से बदलता है, तो पुरानी व्यवस्थाओं के समर्थक नई सरकार के लिए खतरा बनते हैं।
- ऐसे में लेनिन का मानना था कि इन विरोधियों को आतंक के जरिए दबाना ही समाधान है।
# 3. क्रांति का बचाव
लेनिन के समय में सोवियत रूस चारों ओर से दुश्मनों से घिरा हुआ था—आंतरिक और बाहरी दोनों।
- आंतरिक: पूंजीवादी समर्थक और राजनीतिक विरोधी।
- बाहरी: पश्चिमी देश, जो साम्यवाद को समाप्त करना चाहते थे।
इन परिस्थितियों में "लाल आतंक" (Red Terror) का प्रयोग किया गया, जिसमें हजारों राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाला गया, निर्वासित किया गया, या मार दिया गया।
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वैचारिक संदर्भ में आतंक का उपयोग
लेनिन का दृष्टिकोण केवल राजनीतिक रणनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि यह साम्यवादी विचारधारा के भीतर ही निहित था।
- माओत्से तुंग ने कहा था, "सत्ता बंदूक की नली से निकलती है।"
- यह विचारधारा बताती है कि क्रांति और सत्ता दोनों के लिए बल का उपयोग आवश्यक है।
- साम्यवाद के अनुयायियों ने इसे "आवश्यक बुराई" के रूप में देखा।
- उनका मानना था कि समाजवाद और अंततः साम्यवाद तक पहुंचने के लिए एक अस्थायी "तानाशाही" जरूरी है।
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आतंक के परिणाम
लेनिन की इस रणनीति के दीर्घकालिक परिणाम गंभीर रहे:
- मानवाधिकार हनन: लाखों लोग बिना न्याय के मारे गए।
- राजनीतिक अस्थिरता:
- समाज में डर और अविश्वास का माहौल बना।
- इसने साम्यवादी सरकारों को अस्थिर और अलोकप्रिय बना दिया।
- अर्थव्यवस्था पर असर:
- उत्पादन और विकास बाधित हुए।
- श्रमिक वर्ग की स्थिति में सुधार की बजाय और अधिक गिरावट आई।
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आधुनिक दृष्टिकोण से समीक्षा
आज के लोकतांत्रिक और मानवाधिकार केंद्रित युग में लेनिन की इस नीति की व्यापक आलोचना होती है।
- यह साबित हुआ है कि केवल आतंक और दमन से सत्ता को बनाए रखना संभव नहीं है।
- जनता का विश्वास और सहयोग लंबे समय तक किसी भी सरकार की स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
- लेनिन का यह विचार उस समय के लिए व्यावहारिक लग सकता था, लेकिन इसने साम्यवाद की दीर्घकालिक छवि को नुकसान पहुंचाया।
लेनिन का "आतंक का सहारा" केवल रणनीतिक विचार नहीं था; यह साम्यवादी विचारधारा के क्रियान्वयन में निहित एक कट्टरपंथी पहलू था। हालांकि इसका उद्देश्य पूंजीवादी वर्ग को समाप्त करना और सर्वहारा वर्ग की सत्ता स्थापित करना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप समाज में हिंसा, भय, और अस्थिरता बढ़ी। वैश्विक स्तर पर इसने साम्यवाद को एक दमनकारी विचारधारा के रूप में स्थापित कर दिया।