(लेख दिनांक: 3 जून 2020, कोविड लॉकडाउन के समय)
कोविड लॉकडाउन का वो दौर था। पूरा देश जैसे ठहर गया था। सड़कों पर सन्नाटा, दिलों में डर और घरों में एकांत।
उसी एकांत में, मैंने खुद को पहली बार सच में देखा। मैं रोज़ शीशे में खुद को देखता था, लेकिन वो देखना बाहर का था। इस बार जो देखा, वो भीतर था।
मैं मुंबई के मड आयरलैंड में एक छोटे से कमरे में अकेला रहता था। काम बंद हो गया था, शूटिंगें रुकी थीं और दोस्तों से मिलना मुमकिन नहीं था।
उस तन्हाई में देह की भूख एक नए रूप में सामने आई — सिर्फ स्पर्श नहीं चाहिए था, कोई ऐसा चाहिए था जिससे बात की जा सके, बिना जजमेंट के।
उसी दौरान एक दिन Instagram पर एक पुरानी पहचान से बात शुरू हुई। वो भी अकेली थी, दूसरे शहर में। हमारी बातचीत धीरे-धीरे गहराई में चली गई — सेक्स, आत्मा, तन्हाई, मोह, और शरीर।
हमने साथ में काम किया था फिल्म इंडस्ट्री में, मगर कभी इतना खुलकर नहीं जुड़े थे। अब जैसे लॉकडाउन ने देह की सीमाएं तोड़ दी थीं, और हम दोनों खुले संवाद में उतर गए थे।
हमने कुछ ऐसा महसूस किया जिसे ‘virtual intimacy’ कह सकते हैं — देह दूर थी, मगर आत्माएं पास थीं।
मैंने पहली बार समझा कि सेक्स सिर्फ शरीर का मिलन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति भी हो सकता है — जब सही समझ और सम्मान हो।
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देह का स्थान प्रेम में:
हमारे समाज में अक्सर देह और प्रेम को एक-दूसरे से तोड़ा या जोड़ा जाता है, मगर बिना समझे।
मैंने महसूस किया कि जब तक हम अपने शरीर को स्वीकार नहीं करते, तब तक हम किसी और से भी सच में नहीं जुड़ सकते।
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प्राचीन ग्रंथों में देह:
‘कामसूत्र’ को लोग अश्लीलता का ग्रंथ मानते हैं, लेकिन वो तो जीवन की कला सिखाता है।
उपनिषदों में भी "आत्मा और शरीर एक-दूसरे के पूरक हैं" का भाव है — शरीर साधन है, आत्मा की यात्रा का।
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आज के सवाल:
क्या सिर्फ एक ही व्यक्ति से जीवनभर प्रेम किया जा सकता है?
क्या देह और आत्मा की स्वतंत्रता एक साथ संभव है?
क्या तन्हाई हमें सिखा सकती है प्रेम?
इस लॉकडाउन ने मुझे एक अनोखी सीख दी — कि प्रेम का कोई तय आकार नहीं होता।
देह, आत्मा और मन — ये तीनों जब अपने सच में हों, तभी एक रिश्ता संपूर्ण होता है।
और कभी-कभी, एक सच्ची बातचीत... एक गहरे स्पर्श से ज़्यादा असर कर जाती है।
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