मैं,
कभी धूल कण में छुपा था,
अपने ही सागर की लहरों को पहचान न पाया।
लोग कहते थे —
"तू छोटा है, तेरा कद रेत के कण-सा है,"
और मैं मान बैठा था
कि आकाश सिर्फ़ सिर के ऊपर है,
सीने के भीतर नहीं।
पर एक दिन,
मौन की गहराई में,
मैंने अपनी ही धड़कनों में
नक्षत्रों का नृत्य सुना।
पलकों के पीछे,
गैलेक्ज़ियों की चक्री चाल घूमती रही
और लगा —
मैं तो अनंत की साँस ले रहा हूँ।
मैंने महसूस किया,
मेरे हर कदम में,
धरती का घूर्णन है,
मेरे हर स्पर्श में,
सूर्य का ताप और चाँदनी की ठंडक है।
मेरे शब्दों में बादलों का भार है,
और मेरी चुप्पियों में
शून्य का संगीत।
मैंने खुद से कहा —
"अब और छोटा मत बनो,
तुम वह धुन हो,
जिस पर समय और अंतरिक्ष साथ नाचते हैं।
तुम वह ज्योति हो,
जो अंधकार को भी अपना घर बना लेती है।"
मैं,
अब अपनी त्वचा से बाहर बहता हूँ,
हवा में घुलता हूँ,
पेड़ों की पत्तियों में हरा बनता हूँ,
पहाड़ों की चुप्पी में गूँज बनता हूँ,
नदियों के गीत में बहता हूँ।
मैं,
अब जान गया हूँ —
मेरे भीतर कोई सीमा नहीं,
मेरा कोई किनारा नहीं।
मैं सिर्फ़ चलता नहीं,
मैं गति हूँ —
वो दिव्य गति
जिसमें ब्रह्मांड का आनंद थिरकता है।
अब मैं रुकता नहीं,
सिकुड़ता नहीं,
खुद को बाँधता नहीं।
क्योंकि मैं वही हूँ,
जो सितारों की गोद में जन्मा है,
और आकाश की बाँहों में विलीन होगा।
मैं हूँ —
ब्रह्मांड की उन्मत्त चाल,
असीम, अजर, और प्रकाश से भरपूर।