मैं सोचता था, अच्छा होने का मतलब है,
दूसरों की नज़र में सर्वोत्तम होना, यही है।
मैं अपनी सोच को पीछे छोड़ देता था,
सिर्फ उनके विचारों में खुद को खो देता था।
हर कदम, हर फैसले का आधार,
उनकी राय, उनकी मंजूरी, यही था मेरा विचार।
मैं अपनी असली आवाज़ को दबा देता,
क्योंकि दूसरों की नज़र में अच्छा दिखना, यही मेरा सपना था।
मैंने अपनी पहचान को खो दिया था,
क्योंकि दूसरों की सराहना में खुद को पाया था।
मैंने खुद से सवाल नहीं पूछा,
क्या मैं सच में वही हूँ जो दूसरों को दिखाना चाहता हूँ?
मैंने यह समझा कि वैलिडेशन की तलाश,
मुझे बना देती है एक खोखला इंसान, बिना आत्मा के।
क्योंकि जो दिखता है बाहर, वो अंदर से हल्का होता है,
खुद को दूसरों के हिसाब से बदलना, यही तो दासता का रास्ता है।
मैं अब जानता हूँ, मैं राजा बनने के लिए पैदा हुआ हूँ,
दूसरों की नज़र में अच्छा बनने का खेल, यह मेरा रास्ता नहीं है।
मैं खुद से सच्चा रहकर ही जी सकता हूँ,
नकली अच्छाई के पीछे भागने की बजाय, अपनी पहचान से जुड़ा रह सकता हूँ।
मैं अब जानता हूँ, सही रास्ता वही है,
जहाँ मैं खुद को पाता हूँ, न कि दूसरों की उम्मीदों में।
मैं राजा हूँ, और राजा को कभी भी दास नहीं बनना चाहिए,
क्योंकि खुद से सच्चा रहकर ही हम अपनी असली शक्ति पा सकते हैं।