भाग 1 – क्या इंसान सच में मोनोगैमी (एकविवाह) के लिए बना है?
(दिनांक: 2 जून 2020)
"क्या हम केवल एक ही व्यक्ति से जीवनभर के रिश्ते के लिए बने हैं? या हमारी प्रकृति इससे कहीं ज़्यादा जटिल है?"
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मैं जब 2020 के लॉकडाउन में अपने अकेलेपन और आत्ममंथन से गुज़र रहा था, तब मेरे ज़हन में यह सवाल गहराई से उभरा—क्या इंसान जैविक रूप से मोनोगैमी के लिए डिज़ाइन किया गया है? या यह सिर्फ़ एक सामाजिक व्यवस्था है जो सभ्यता को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई?
इस विषय को समझने के लिए मैंने इतिहास, जीवविज्ञान, मनोविज्ञान और अध्यात्म—चारों को खंगाल डाला। आइए, एक-एक करके इसे समझते हैं:
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1. जैविक दृष्टिकोण:
प्रकृति में केवल 3-5% प्रजातियाँ ही मोनोगैमी का पालन करती हैं। इंसान के करीबी प्राइमेट्स—चिम्पांजी और बोनोबो—पॉलीगैमस होते हैं यानी कई साथी रखते हैं।
मानव शरीर की बनावट (जैसे पुरुष टेस्टिकल साइज़, सेक्स ड्राइव, आदि) यह संकेत देती है कि हम evolutionary रूप से मोनोगैमी के लिए नहीं बल्कि पार्टनर वैरायटी के लिए बने हैं।
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2. ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण:
पुराने ज़माने में जनजातीय समाजों में साझा जीवन और कभी-कभी साझा यौन संबंध भी आम बात थी। जैसे-जैसे कृषि समाज उभरे और संपत्ति का विचार आया, वहाँ "वंश की शुद्धता" के लिए मोनोगैमी का विचार ज़ोर पकड़ने लगा।
राजाओं ने बहुविवाह किए, लेकिन आम जनता को मोनोगैमी की मर्यादा सिखाई गई। धर्मों ने इसे और गहराई दी।
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3. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
मोनोगैमी सुरक्षा और स्थायित्व देती है। लेकिन मनुष्य की चेतना जिज्ञासु है—नई चीजें खोजने वाली। इसी वजह से कई लोग लंबे रिश्तों में बोरियत, यौन असंतोष या धोखा अनुभव करते हैं।
आज का व्यक्ति, विशेषकर आधुनिक शहरों में, दो बातों के बीच फंसा है — "मन का आकर्षण" और "धर्म/परिवार की मर्यादा"।
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4. अध्यात्म और ओशो का दृष्टिकोण:
ओशो ने स्पष्ट कहा — "मनुष्य का प्रेम कभी एक तक सीमित नहीं रहा है।"
उनका कहना था कि जब तक सेक्स एक शुद्ध और आनंददायक ऊर्जा है, उसे repress नहीं करना चाहिए। लेकिन जब सेक्स सिर्फ शरीर तक सीमित हो जाए और प्रेम न रहे — तो वह बंधन बन जाता है।
ओशो की मोनोगैमी पर यह टिप्पणी बड़ी दिलचस्प है:
> "मोनोगैमी एक सामाजिक जेल है। प्रेम स्वतः चलता है, वह किसी नियम या अनुबंध का मोहताज नहीं होता।"
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निष्कर्ष:
तो क्या इंसान मोनोगैमी के लिए बना है?
शायद नहीं। लेकिन वह इसे चुन सकता है — यदि वह प्रेम और समझ से भरा हुआ रिश्ता चाहता है।
मोनोगैमी कोई जैविक बाध्यता नहीं, बल्कि एक चयन है — जो किसी के मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
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