शरीर की पुकार



मैं अपने शरीर की भाषा सुनना चाहता हूँ,
उसकी हर धड़कन, हर स्पंदन को समझना चाहता हूँ।
वह चुप नहीं रहता, बस मैं ही अनसुना कर देता हूँ,
उसके संकेतों को शोर में दबा देता हूँ।

जब थकान मुझे छूती है,
मैं उसे झटक कर आगे बढ़ जाता हूँ।
जब दर्द कोई कहानी कहता है,
मैं उसे दबाकर मुस्कुराता हूँ।

मेरा हृदय जब भार से भर जाता है,
मैं उसे तर्कों से शांत करने की कोशिश करता हूँ।
मेरी साँसें जब गहरी होना चाहती हैं,
मैं उन्हें भागदौड़ में उलझा देता हूँ।

पर शरीर मौन रहकर भी बोलता है,
हर तनाव, हर पीड़ा में कुछ कहता है।
मैं अब उसकी भाषा सीखना चाहता हूँ,
हर संकेत को सम्मान देना चाहता हूँ।

अब मैं उसकी थकान को विश्राम देना चाहता हूँ,
उसके दर्द को स्नेह से सहलाना चाहता हूँ।
अब मैं उसके साथ संघर्ष नहीं,
संवाद करना चाहता हूँ।


ऊर्जा का खेल: संगति का प्रभाव



मनुष्य केवल शरीर नहीं, ऊर्जा का प्रवाह है,
हर संपर्क में एक ऊर्जा का खेल छिपा है।
जिसकी शक्ति अधिक हो, वह विजय पाता है,
और कमजोर ऊर्जा को अपने अधीन करता है।

ऊर्जा का संग हर पल चलता है,
हर मनुष्य पर इसका असर होता है।
अच्छे संग से जोश बढ़े,
गलत संग से जीवन घटे।

संगति का असर अदृश्य सही,
पर जीवन पर यह स्पष्ट दिखे।
जो नकारात्मक संग में फंसे,
वह ऊर्जा खोकर कमजोर पड़े।


सकारात्मक ऊर्जा का संग लो,
अच्छे विचारों का रस पियो।
जो प्रेरणा दे, वही साथी हो,
जो खींचे नीचे, उससे दूरी करो।

अपने आसपास के लोगों को चुनो,
जिनकी ऊर्जा तुम्हें निखारे, वो गिनो।
क्योंकि संगत से ही बनता है भाग्य,
ऊर्जा के खेल में छिपा है सारा सत्य।

मनुष्य ऊर्जा है, यह सदा मानो,
हर संपर्क में ऊर्जा का ध्यान जानो।
संगति से ही जीवन का रूप बने,
इस सत्य को हृदय में सदैव बसाए रहो।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...