आघात: एक गहरी पुनःरचना


आघात सिर्फ़ यादों में नहीं रहता,
यह हमारे दिमाग की संरचना को बदलता है,
हमारे तनाव पर प्रतिक्रिया, विश्वास,
हमारी आत्म-छवि और दुनिया को देखने का तरीका—
सब कुछ एक नए सिरे से ढलता है।

"बस छोड़ दो," यह कहना आसान है,
यह ऐसा है जैसे टूटी टांग वाले से कहा जाए,
"बस दौड़ लो, चला लो,"
यह नहीं है कि हम अतीत में फंसे हैं,
यह है कि हमारा तंत्रिका तंत्र उसी आघात से फिर से आकार लेता है।

चंगाई भूलने के बारे में नहीं है,
यह फिर से जीने का तरीका सीखने के बारे में है,
जहाँ हर प्रतिक्रिया, हर सोच,
एक नया रूप लेती है, जो पहले से भिन्न होती है।

आघात हमें अतीत में नहीं रखता,
वह हमारे शरीर और मन की गहराई में उतरता है,
यह हमें नया बनाता है,
लेकिन हमें फिर से खुद को पहचानने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

समय चाहिए, धैर्य चाहिए,
क्योंकि हम जो आघात झेलते हैं, वह हमारे अस्तित्व का हिस्सा बन जाता है,
लेकिन उसे स्वीकार करना, उसे समझना,
इसी में असली चंगाई और उबरने का रास्ता है।


अवश्यमेव भवितव्यं



मैं खोजता हूँ उत्तर,
पर शायद प्रश्न ही मेरा भाग्य है।
सही बुद्धि क्यों नहीं मिलती?
क्यों पीड़ा मेरी छाया बनकर चलती है?

शब्दों की शिक्षा, तर्कों का ज्ञान,
पर कोई सिद्धांत इन दीवारों को नहीं तोड़ता।
कहीं कुछ और गहरा है,
जो हर सीख से परे मुझे बाँधता है।

क्या यह दंड है, या कोई ऋण?
क्या यह प्रारब्ध की छाया है?
या शायद मुझे जलना है,
ताकि मैं अपने ही ताप से ढल जाऊँ।

मैं ही प्रश्न हूँ, मैं ही उत्तर,
मुझे स्वयं को देखना होगा।
दर्पण की छवि से नहीं,
उस मौन से जो हर सत्य को निगल जाता है।

शायद यही असली परीक्षा है,
स्वयं को देख पाने की।
क्योंकि दुःख कोई दंड नहीं,
बल्कि द्वार है—उस सत्य तक, जो मुझे जानता है।


हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप: शक्ति और भक्ति के प्रतीक

भगवान हनुमान केवल एक भक्त ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साकार रूप हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और ग्रंथों में मिलता है...