May 2020 Lockdown Diary

हस्तमैथुन: पाप या प्रकृति?
– एक मौन कामवासना की गूंज

"जब पूरी दुनिया थम गई थी, तब देह की पुकार और भी तेज़ हो गई थी..."

मई 2020 – कोविड के लॉकडाउन का वो महीना, जब हम सब अपने-अपने घरों में सिमटे बैठे थे। बाहर वायरस का डर था और भीतर एक अजीब बेचैनी। स्पर्श, आलिंगन, चुंबन — ये सब केवल कल्पना में रह गए थे। ऐसे समय में बहुत से लोग एक ऐसे अनुभव की तरफ लौटे जिसे हम अक्सर छुपाते हैं — हस्तमैथुन।


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क्या हस्तमैथुन पाप है? या यह प्रकृति की देन है?

हमारे समाज में अक्सर इसे गंदा, शर्मनाक, या अपराध जैसा माना जाता है। मगर जब मैंने खुद इस विषय पर आत्मचिंतन किया और पढ़ना शुरू किया — तो मुझे एहसास हुआ कि यह कोई मनुष्य का 'बिगाड़ा हुआ व्यवहार' नहीं है, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो न केवल मनुष्य, बल्कि जानवरों में भी पाई जाती है।


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जानवर भी करते हैं हस्तमैथुन?

हाँ। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि हाथी, चिंपैंज़ी, बिल्लियाँ, कुत्ते, डॉल्फ़िन, और यहाँ तक कि पक्षी भी हस्तमैथुन करते हैं।

चिंपैंज़ी अक्सर पत्तियों या पत्थरों का उपयोग करते हैं खुद को संतुष्ट करने के लिए।

डॉल्फ़िन समुद्र के किनारों या साथी डॉल्फ़िन की सहायता से अपनी यौन इच्छाओं को शांत करते हैं।

नर हाथी अक्सर अपने लिंग को जमीन से रगड़ कर सुख प्राप्त करते हैं।


तो क्या ये भी पाप कर रहे हैं? नहीं। क्योंकि उनके लिए यह स्वाभाविक है। तो हमारे लिए क्यों नहीं?


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विज्ञान की नज़र से

हस्तमैथुन:

तनाव कम करता है

नींद को बेहतर बनाता है

यौन स्वास्थ को बनाए रखता है

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम कर सकता है


यह नशा नहीं है, जब तक कि यह दिनचर्या पर हावी न हो जाए।


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ओशो की सोच

ओशो ने कहा था:
“Sex is a natural energy. It should be meditative, not condemned.”
उनका मानना था कि यदि हम हस्तमैथुन को अपराध की नजरों से देखना छोड़ दें और उसे ध्यानपूर्वक समझें, तो यह आत्म-प्रेम का एक रूप बन सकता है।


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धार्मिक और सामाजिक द्वंद्व

भारत जैसे देश में जहाँ कामसूत्र जन्मा, वहाँ आज भी हस्तमैथुन को गुप्त, शर्मनाक या धर्मविरुद्ध माना जाता है।

कुछ पुरानी मान्यताएँ कहती हैं कि इससे "ओज" की हानि होती है

मगर आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि यह सिर्फ गिल्ट से पैदा हुआ डर है



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लॉकडाउन में आत्म-स्पर्श की सच्चाई

लॉकडाउन में जब यौन संबंध संभव नहीं थे, तब मैंने खुद को, अपने शरीर को, अपनी स्पंदनशीलता को महसूस किया — बिना अपराधबोध के। मैंने जाना कि हस्तमैथुन केवल देह का क्रिया नहीं, मन की भी एक शुद्धि हो सकता है, अगर वह ध्यान से किया जाए।


हस्तमैथुन ना तो पाप है, ना पुण्य — यह सिर्फ एक प्राकृतिक क्रिया है। बस जैसे भोजन का अति करना नुकसानदेह होता है, वैसे ही इसका भी संतुलन ज़रूरी है। स्वीकृति, आत्म-जागरूकता और ध्यान — यही इसकी कुंजी है।