मैं वही बनूँ



मैं वही बनूँ, जो सहेजता हो,
जो हर घाव को, प्रेम से सहता हो।
मैं वही बनूँ, जो हर राह चलने को,
मन में न कोई संकोच रखता हो।

मैं वही बनूँ, जो दिल खोलकर जी सके,
जिसके सपनों में न कोई डर टीके।
जो हर भाव को, हर आशा को,
समर्पण से गले लगाता हो।

मैं वही बनूँ, जो इस जग की नरमी में,
सौंदर्य और सच्चाई को देख सके।
जो हर रिश्ते में विश्वास रखे,
हर दृष्टि में भलाई को खोज सके।

मैं वही बनूँ, जो साहस से भरा हो,
जो अंधेरों में भी उम्मीद जला सके।
जो छुपने से इनकार करे,
जो सच्चाई के लिए खड़ा रह सके।

मैं वही बनूँ, जो हर दिल को देख सके,
जिसकी उपस्थिति, प्रेम का एहसास कराए।
जो हर बार, हर क्षण में,
अपना स्नेहमय हाथ बढ़ाए।

मैं वही बनूँ, जो इस कठोर जग में,
अपनी नरमी न खोने दे।
जो हर चोट पर मुस्कान रखे,
हर कांटे को भी गुलाब माने।

दुनिया को चाहिए ऐसे लोग,
जो संवेदनाओं से भरे हों।
मैं वही बनूँ, क्योंकि यही मेरा सत्य है,
हर दुख, हर प्रेम का साथी हो।


विनम्रता और कर्म

विनम्रता का दीप विनम्रता से मिटता अहंकार, हरि द्वार पर झुके यह संसार। गर्व का तिलक जब छूटे, जीवन का अर्थ तभी फूटे। नीच झुककर ही ऊँचाई मिले, ...