हकीकत से दूर, एक नया संसार है,

मैं नशा करता हूँ, हद से ज्यादा,
मुझे छोटा-छोटा सा दिखता है 
जो सबसे बड़ा-बड़ा है।

दुनिया के रंग फीके लगते हैं,
सपनों की दुनिया में खो जाता हूँ।

आसमान के तारे भी पास नजर आते हैं,
धरती का हर कोना, सजीव हो जाता है।

हकीकत से दूर, एक नया संसार है,
जहाँ हर चीज़ का अपना एक आकार है।

पर जब नशा उतरता है, हकीकत लौट आती है,
तब समझ आता है, क्या खोया, क्या पाया है।

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...